आई एन वी सी न्यूज़
उरई (जालौन ),
आदिम विकृति एवं पितृ सत्त्तातमक समाज के दो पाटों के बीच पिस रही नारी की मुतवातिर यातना का दस्तावेज है पोस्टमार्टम नाटक, यह नाटक निर्भया से लेकर 6 साल की मासूम बच्चिओं के साथ हो रहे दुराचार के साथ ही लड़की के साथ हो रहे दोहरे व्यवहार की साहसी गवाही देता नज़र आता है !
नाटक पोस्टमार्टम जहाँ आदिम काल में औरत को पैर की जूती से ज्यादा स्थान नहीं देता ! कमोवेश आज भी भले तमाम प्रगति शील सोच के होने का दावा मंचों पर करते दिखाई पड़ते हैं लेकिन आफिस में, भीड़ भरी रेल व बस में दबी फसी उनकी पुत्री की उम्र की युवती को देख कर अक्सर उनकी जीभ लपलपाती दिखाई पड़ती है ! युवा नाट्य निर्देशक आशुतोष पाण्डे के कसे हुए निर्देशन तथा उनके जीवंत लेखन ने इस नाटक को अपने समकालीन नाट्य निर्देशक की पहली पंक्ति में बैठा दिया ! नाटक का कथानक प्रतीकात्मक ढंग से शुरू होता है ! मंच की एक दीवार पर एक बड़ा सा मकड़ी है जिसमें गुड़ियाँ बुरी तरह से फंसी हुई नज़र आती हैं वहीं मुर्दा चेतना को ओढ़े चार-पांच युवा आदिम रूप लिए हर युवा अपने हाथों से एक-एक गुडिया लिए कहता है अच्छा तुम अपने नाखूनों से मेरा विरोध करोगी ! लो तुम्हारे नाख़ून ही तोड़ देता हूँ ! ये तुम्हारे ताकतवर हाथ मेरे अन्याय का विरोध करेंगे ! लो ये तुम्हारे दोनों हाथ ही तोड़ देता हूँ फिर अट्टहास करते हुए कहते हैं की अच्छा तुम्हारी जुबान और तुम्हारा दिमाग हमारी हरकतों का विरोध करता रहेगा ! यह कह कर वे सभी युवक अपनी-अपनी गुडिया का गला घोंट मार डालते हैं !
नाटक की कहानी घर में मासूम भतीजी के साथ चाचा के घ्रणित व्यवहार, के साथ-साथ हमारे स्वाभाव की मानसिकता को बहुत सच्चाई से प्रतिबिम्बित करता है ! वो चाहे धार्मिक मान्यताएं हैं जो स्त्री का दम घोंट देती हैं या फिर हमारी रूढ़वादीपरम्परा है जो स्त्री को टुकड़ों-टुकड़ों में बंटती है ! किसी महा नगर में एक ही आफिस में काम करने वाले पति-पत्नी थके-हारे शाम को घर पहुचते हैं तो सोफे में बैठा आदमी सबसे पहले पत्नी से चाय की माँग करता है ! या खेतों और घरों में काम करने वाली महिला को जो दिन भर काम करती हैं पूछने पर यह बताती हैं कि पत्नी कुछ नहीं करती वह सिर्फ हॉउस वाइफ है ! बहराल यह नाटक सभी प्रेक्षकों की आत्मा के किसी हिस्से को जरुर करीब से छूता हुआ यह सोचने पर मजबूर करता है क्या अभी तक हमने नारी के साथ जो कुछ किया आज से हमें व्यवहार में क्या बदलाव नहीं करना चाहिये !
इसके पूर्व गरिमा पाठक ने कन्या भ्रूण हत्या पर एकल नाट्य प्रस्तुत किया ! जिसे प्रेक्षकों ने खूब सराहा और ये भी कहा कि इसके और भी नये आयाम होने चाहिये !
नाट्य समारोह का शुभारम्भ मुख्य अतिथि शिक्षा विद राजेन्द्र निरंजन ने नटराज एवं सरस्वती प्रतिमा के सम्मुख दीप जलाकर किया !
पोस्टमार्टम नाटक में शिवानी भारतीय , शेफाली नायक , मेनका, अनुज कुमार, सिद्धार्थ पाल सत्यम उपाध्याय, भानू पाण्डेय, स्वेतांक कुमार मिश्रा, पार्थ जायसवाल, अकरम अली, आकाश अग्रवाल संदीप यादव ने अपने-अपने अभिनय से नाटक में छाप छोड़ी ! जब कि भाष्कर शर्मा ने मंच सज्जा में अपनी परिकल्पना के साथ नाटक के कथानक को और मजबूत किया ! ध्वनि तथा संचालन में सुनील कुमार ने अच्छे इफेक्ट दिये ! पीयूष मिश्रा के गीत तथा सुरेश पंजम की कविता प्रेक्षकों के कानों में नाटक के बाद भी देर तक गूंजता रहा !
लोकमंगल की अध्यक्षा डॉ रेनू चंद्रा ने कार्यक्रम का संचालन किया तथा राधा कृष्ण अग्रवाल , मेवा लाल , गोपाल कृष्ण अवस्थी तथा रोहित विनायक पदाधिकारिओं ने सहयोग किया !
नाटक पोस्टमार्टम जहाँ आदिम काल में औरत को पैर की जूती से ज्यादा स्थान नहीं देता ! कमोवेश आज भी भले तमाम प्रगति शील सोच के होने का दावा मंचों पर करते दिखाई पड़ते हैं लेकिन आफिस में, भीड़ भरी रेल व बस में दबी फसी उनकी पुत्री की उम्र की युवती को देख कर अक्सर उनकी जीभ लपलपाती दिखाई पड़ती है ! युवा नाट्य निर्देशक आशुतोष पाण्डे के कसे हुए निर्देशन तथा उनके जीवंत लेखन ने इस नाटक को अपने समकालीन नाट्य निर्देशक की पहली पंक्ति में बैठा दिया ! नाटक का कथानक प्रतीकात्मक ढंग से शुरू होता है ! मंच की एक दीवार पर एक बड़ा सा मकड़ी है जिसमें गुड़ियाँ बुरी तरह से फंसी हुई नज़र आती हैं वहीं मुर्दा चेतना को ओढ़े चार-पांच युवा आदिम रूप लिए हर युवा अपने हाथों से एक-एक गुडिया लिए कहता है अच्छा तुम अपने नाखूनों से मेरा विरोध करोगी ! लो तुम्हारे नाख़ून ही तोड़ देता हूँ ! ये तुम्हारे ताकतवर हाथ मेरे अन्याय का विरोध करेंगे ! लो ये तुम्हारे दोनों हाथ ही तोड़ देता हूँ फिर अट्टहास करते हुए कहते हैं की अच्छा तुम्हारी जुबान और तुम्हारा दिमाग हमारी हरकतों का विरोध करता रहेगा ! यह कह कर वे सभी युवक अपनी-अपनी गुडिया का गला घोंट मार डालते हैं !
नाटक की कहानी घर में मासूम भतीजी के साथ चाचा के घ्रणित व्यवहार, के साथ-साथ हमारे स्वाभाव की मानसिकता को बहुत सच्चाई से प्रतिबिम्बित करता है ! वो चाहे धार्मिक मान्यताएं हैं जो स्त्री का दम घोंट देती हैं या फिर हमारी रूढ़वादीपरम्परा है जो स्त्री को टुकड़ों-टुकड़ों में बंटती है ! किसी महा नगर में एक ही आफिस में काम करने वाले पति-पत्नी थके-हारे शाम को घर पहुचते हैं तो सोफे में बैठा आदमी सबसे पहले पत्नी से चाय की माँग करता है ! या खेतों और घरों में काम करने वाली महिला को जो दिन भर काम करती हैं पूछने पर यह बताती हैं कि पत्नी कुछ नहीं करती वह सिर्फ हॉउस वाइफ है ! बहराल यह नाटक सभी प्रेक्षकों की आत्मा के किसी हिस्से को जरुर करीब से छूता हुआ यह सोचने पर मजबूर करता है क्या अभी तक हमने नारी के साथ जो कुछ किया आज से हमें व्यवहार में क्या बदलाव नहीं करना चाहिये !
इसके पूर्व गरिमा पाठक ने कन्या भ्रूण हत्या पर एकल नाट्य प्रस्तुत किया ! जिसे प्रेक्षकों ने खूब सराहा और ये भी कहा कि इसके और भी नये आयाम होने चाहिये !
नाट्य समारोह का शुभारम्भ मुख्य अतिथि शिक्षा विद राजेन्द्र निरंजन ने नटराज एवं सरस्वती प्रतिमा के सम्मुख दीप जलाकर किया !
पोस्टमार्टम नाटक में शिवानी भारतीय , शेफाली नायक , मेनका, अनुज कुमार, सिद्धार्थ पाल सत्यम उपाध्याय, भानू पाण्डेय, स्वेतांक कुमार मिश्रा, पार्थ जायसवाल, अकरम अली, आकाश अग्रवाल संदीप यादव ने अपने-अपने अभिनय से नाटक में छाप छोड़ी ! जब कि भाष्कर शर्मा ने मंच सज्जा में अपनी परिकल्पना के साथ नाटक के कथानक को और मजबूत किया ! ध्वनि तथा संचालन में सुनील कुमार ने अच्छे इफेक्ट दिये ! पीयूष मिश्रा के गीत तथा सुरेश पंजम की कविता प्रेक्षकों के कानों में नाटक के बाद भी देर तक गूंजता रहा !
लोकमंगल की अध्यक्षा डॉ रेनू चंद्रा ने कार्यक्रम का संचालन किया तथा राधा कृष्ण अग्रवाल , मेवा लाल , गोपाल कृष्ण अवस्थी तथा रोहित विनायक पदाधिकारिओं ने सहयोग किया !