-तनवीर जाफ़री-
हज़ारों वर्षों से पूरे विश्व में कहीं न कहीं धर्म व नस्ल भेद के नाम पर मानव जाति में टकराव होते रहे हैं। आज भी अनेक चिंतक, समाजशास्त्री व लेखक ऐसे हैं जो कभी ईसाईयों व मुसलमानों के मध्य सभ्यता के संघर्ष की थ्योरी को सही साबित करने की कोशिश में लगे रहते हैं तो कई इस्लाम के नाम पर फैलाए जा रहे आतंकवाद को विश्व के लिए खतरा बताते हैं तो भारत जैसे देश में कई ऐसे लोग भी हैं जो हिंदू राष्ट्र अथवा हिंदू संप्रदायवाद का भय दिखाकर देश का माहौल भयभीत बनाने की कोशिश में लगे रहते हैं। परंतु ऐसी भावनाएं व्यक्त करने वालों को तथा ऐसे विचारों को हवा देने वालों को निराशावादी प्रवृति का चिंतक ही कहा जा सकता है। क्योंकि पूरे संसार में साधारण मानवजाति का स्वभाव न ही नस्ल भेद समर्थक है न ही सांप्रदायिकतावादी। ठीक इसके विपरीत वैश्विक स्वभाव समय-समय पर धार्मिक समरसता का ही उदाहरण पेश करता रहता है और यह प्रमाणित करता रहता है कि दुनिया के आम लोगों की नज़रों में धर्म, नस्ल अथवा भेद यहां तक कि भौगोलिक सीमाओं से बढक़र सबसे पहले मानवता तथा मानव हितों की रक्षा का स्थान है।
सवाल यह है कि यदि वैश्विक स्वभाव धार्मिक समरसता का है तो फिर पूरी दुनिया में समय-समय पर पैदा होने वाले धार्मिक अथवा नस्लीय तनाव के कारण क्या हैं? निश्चित रूप से इसके जवाब में यह बात शत-प्रतिशत स्वीकार की जा सकती है कि चाहे वह इतिहास में दर्ज पूर्व की अनेक संघर्षपूर्ण व हिंसक वैश्विक घटनाएं रही हों अथवा आज दुनिया के तमाम देशों में हो रही धर्म व संप्रदाय आधारित हिंसक घटनाएं अथवा वैमनस्यपूर्ण वातावरण। इसमें कोई दो राय नहीं कि इन सभी घटनाओं के पीछे केवल एक ही मकसद देखने को मिलेगा और वह है सत्ता की राजनीति अथवा अपने राजनैतिक साम्राज्य का विस्तार अथवा राजनैतिक वर्चस्व की अभिलाषा। राजनैतिक स्वार्थ की मुभर लोगों की यही सोच आम लोगों में धार्मिक उन्माद, संप्रदायवाद तथा नस्ल भेद व जातिवाद जैसे ज़हर घोलने का काम करती है।
संयुक्त राष्ट्र अमेरिका को विश्व के सबसे संपन्न व शक्तिशाली देश के रूप में देखा जाता है। 2009 में जब अमेरिकावासियों ने बराक ओबामा को अपने 44वें राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित किया उस समय यह साबित हो गया था कि अमेरिका में न केवल नस्लभेद की राजनीति दम तोड़ चुकी है बल्कि इरा$क तथा अफगानिस्तान में जॉर्ज बुश द्वितीय के शासनकाल में सैन्य संघर्ष में बुरी तरह सेे अमेरिका के उलझे होने के बावजूद एक अश्वेत मुस्लिम पिता की संतान का अमेरिकी राष्ट्रपति चुना जाना इस बात का सुबूत है कि जनता ने योग्यता के आधार पर तथा धर्म व नस्ल-भेद के विरोध में अपना मतदान किया। और बराक हुसैन ओबामा को अपना राष्ट्रपति निर्वाचित किया। ज़ाहिर है इस चुनाव ने उन सभी अटकलों पर विराम लगा दिया था जो जॉर्ज बुश के नेतृत्व वाले अमेरिका को मुस्लिम जगत का दुश्मन साबित करने की कोशिशों में लगे थे। उधर ओबामा ने भी अपने निर्वाचन के बाद जो भी निर्णय लिए और अब तक लेते आ रहे हैं वे सभी अमेरिकी हितों के पक्ष को मद्देनज़र रखते हुए हैं न कि अपने पिता की नस्ल अथवा उनके धर्म को ध्यान में रखते हुए। एक सच्चे राष्ट्रवादी तथा राष्ट्रभक्त व्यक्ति की पहचान भी यही होनी चाहिए कि वह संकीर्ण सीमाओं से ऊपर उठकर अपने देश तथा देशवासियों और मानवीय कल्याणकारी योजनाओं को सर्वोपरि रखते हुए कोई $फैसला ले।
अब एक बार फिर लंदन जैसे विश्व के सबसे बड़े प्रतिष्ठित एवं ऐतिहासिक महानगर में पहली बार सादिक़ खान नामक एक पाकिस्तानी मूल के व्यक्ति को लंदनवासियों ने अपने मेयर के रूप में निर्वाचित किया है। सादिक $खान हालांकि एक मुस्लिम परिवार में ज़रूर पैदा हुए परंतु लंदन में रहते हुए उनके आचार-विचार तथा उनके व्यवहार ने हमेशा यही साबित किया कि वे वास्तव में एक अच्छे इंसान हैं तथा सभी धर्मों व समुदायों के मघ्य काफी लोकप्रिय हैं। वे बड़े गर्व से यह कहते भी हैं कि वे कोई मुस्लिम नेता नहीं हैं। समाचारों के अनुसार जिस समय सादिक़ $खान ईसाई बाहुल्य इस लंदन महानगर में मेयर का चुनाव लड़ रहे थे उस समय वहां की मस्जिदों, मंदिरों तथा गिरिजाघरोंं में सादिक़ $खान की विजय हेतु प्रार्थना सभाएं की जा रही थीं। और सादिक़ $खान ने भी अपनी जीत से पहले और बाद में भी सभी धर्मों के सभी धर्मस्थलों पर जाकर पूरी अकीदत के साथ अपनी आस्था के पुष्प अर्पित किए और यह संदेश देने की कोशिश की कि वे पहले एक इंसान हैं, मानवतावादी हैं, लंदन के हितों की रक्षा करने का संकल्प लेने वाले एक जि़म्मेदार लंदनवासी हैं उसके बाद और कुछ। सादिक़ $खान के लंदन का मेयर निर्वाचित होने के बाद कुछ आलोचकों द्वारा एक सवाल यह भी उठाया गया कि ईसाई बाहुल्य लंदन ने तो एक मुस्लिम को अपना मेयर चुनकर धार्मिक समरसता का सुबूत दे दिया परंतु क्या किसी मुस्लिम देश मेंं भी कोई ऐसी मिसाल देखी या सुनी गई है?
निश्चित रूप से दुनिया के कई देशों में ऐसे कई उदाहरण हैं जो यह साबित करते हैं कि धार्मिक समरसता किसी एक धर्म अथवा देश की ही जागीर नहीं बल्कि यह मानवजाति की विशेषताओं में सर्वोच्च हैसियत रखती है। बहरीन एक ऐसा मुस्लिम बाहुल्य देश है जहां सत्तर प्रतिशत से अधिक मुस्लिम जनसंख्या है। 2005 में यहां की संसद के उच्च सदन शूरा कौंसिल ने अलीस थॉमस साईमन नामक ईसाई महिला को अपना पहला अध्यक्ष चुना था। पाकिस्तान जहां लगभग 97 प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या है वहां बंदरगाह एवं जहाजरानी मंत्री के पद पर कामरान मिखाईल नामक ईसाई नेता नियुक्त हुए।
सर भगवानदास पाकिस्तान के मुख्य न्यायधीश रह चुके हैं तथा आज भी वे मुख्य चुनाव आयुक्त के पद पर सुशोभित हैं। इसी प्रकार 90 प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या वाले देश मिस्र में बुतरस-बुतरस घाली जोकि ईसाई समुदाय से हैं ने 14 वर्षों तक विदेश मंत्री का पद संंभाला। फेबरूनिया अक्योल नामक ईसाई व्यक्ति टर्की के मैर्डीन महानगर में सहमेयर चुने गए। टर्की 99.4 प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या वाला देश है। इसी प्रकार फि़लिस्तीन के प्रसिद्ध शहर रामल्ला में जिनेट मिखाईल नामक ईसाई नेता को मेयर के रूप में निर्वाचित किया जा चुका है। सेनेगल में 95.4 फीसदी मुस्लिम आबादी होने के बावजूद यहां 20 वर्षों तक स्वर्गीय लियोपोर्ड सेडर सेंघर नामक ईसाई नेता यहां के राष्ट्रपति बने रहे। इसी तरह 54 प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या वाले लेबनान में मिखाईल सुलेमन नामक ईसाई नेता को वहां के राष्ट्रपति पद पर निर्वाचित होते देखा गया।
भारतवर्ष को भी उस समय पूरी दुनिया बड़े ही आश्चर्य के साथ देखती थी जिस समय भारत की लगभग 85 प्रतिशत हिंदू जनसंख्या वाले देश में डा०एपीजे अब्दुल कलाम राष्ट्रपति, डा० मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री तथा सोनिया गांधी यूपीए की चेयरपर्सन के रूप में सत्तासीन थीं। भारत पहले भी देश को कई अल्पसंख्यक राष्ट्रपति व थलसेना व वायुसेना अध्यक्ष, मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य अनेक महत्वपूर्ण पदों पर गैर हिंदू लोगों को मनोनीत अथवा निर्वाचित कर अपनी धर्मनिरपेक्षता व धार्मिक समरसता का सुबूत दे चुका है। इसी प्रकार दुनिया के और कई देश ऐसे भी हैं जो ईसाई बाहुल्य होने के बावजूद हिंदू अथवा सिख समुदाय के लोकप्रिय राजनेताओं अथवा अधिकारियों को अपने देश के प्रमुख पदों पर सुशोभित किए हुए हैं। भारत व पाकिस्तान जैसे देशों को यदि हम मीडिया की नज़रों से या धर्मविशेष की संकीर्ण राजनीति करने वाले लोगों की निगाहों से देखें तो हमें इन दोनों ही देशों का एक भयावह चित्रण दिखाई देता है। परंतु यदि हम इन्हीं देशों के आम लोगों के स्वभाव की बात करें अथवा उनके दिलों की गहराईयों में झांकने की कोशिश करें तो हमें यही दिखाई देता है कि कहीं चेन्नई में आई बाढ़ में नगर की मस्जिदों के दरवाज़े हिंदू व ईसाई बाढ़ पीडि़तों के लिए खोल दिए गए हैं तो कहीं मुंबई में गणेश उत्सव के पंडाल में जुम्मे की नमाज़ अता की जा रही है। कहीं कोई नकाबपोश मुस्लिम मां अपने छोटे से बच्चे को कृष्ण कन्हैया बनाकर उसे स्टेज पर अपनी उंगलिया थमाकर ले जा रही है तो कहीं कोई मंदिर का पुजारी अपने कंधे पर हज़रत इमाम हुसैन का ताबूत या ताजि़या लेकर या हुसैन या हुसैन कहता सुनाई दे रहा है।
ऐसी ही खबरें पिछले दिनों पाकिस्तान से भी सुनने को मिलीं जबकि होली के अवसर पर न केवल प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ व बिलावल भुट्टो ने पाकिस्तान के हिंदू समुदाय के साथ मिलकर होली का रंग खेला बल्कि वहां के आम मुसलमानों ने मानव ढाल की श्रृंखला बनाकर मंदिरों में होली का त्यौहार मना रहे अपने हिंदू भाईयों की रक्षा का संकल्प भी लिया। वैसे भी आज दवा-इलाज कराने के लिए अथवा रक्तदान व अंगदान, शिक्षा व आर्थि सहयोग जैसे जनहितकारी कार्यों ने तो पूरे विश्व के द्वार बिना किसी धर्म व देश अथवा नस्ल भेद की सीमाओं के सभी लोगों के लिए बराबर खोल दिए हैं। यह बातें इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए का$फी हैं कि धार्मिक समरसता वास्तव में एक वैश्विक स्वभाव है। जबकि धार्मिक संकीर्णता का समाज में ज़हर घोलना राजनीति, सत्ता व साम्राज्यवाद का एक घिनौना खेल।
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Tanveer Jafri
Columnist and Author
Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.
He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
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