दुनिया में धर्म तो है मगर कहां ?

rss{ वसीम अकरम त्यागी ** }
कुछ न पूछो आज हम लेक्चर में क्या कहने को हैं, कौम को खुद कौम के मुंह पर बुरा कहने को हैं, किसी शायर का ये शेर आज मेरी तहरीर का उन्वान होना चाहिये था मगर मैंने इसे जानबूझकर नीचे लिखा है। उत्ताराखंड में आई प्राकृतिक से शायद कोई ही हो जो वाकिफ न हो देश से लेकर विदेश तक इस आपदा से परिचित हैं। यह ठीक है कि वहां का संतुलन धार्मिक स्थलों पर होने वाला बाजारवाद है लेकिन उसके लिये जिम्मेदार है कौन ?  अब जब आपदा आ ही गई है तो वहां पर फंसे लोगों को बचाने की जिम्मेदारी आखिर है किसकी ? पुलिस की, सेना की, सरकार की, आम जनता की, स्वयंसेवी संस्थाओं की, या धार्मिक लोगों की क्योंकि अभी तक पूरी त्रासदी से वे लोग नदारद हैं जिनकी दुकाने धर्म के नाम पर चलती हैं, अब चाहे लोगों को उल्टी सीधी सांसे दिलाकर उन्हें नट की तरह तमाशे दिखाने वाले बाबा रामदेव हों या आसाराम बापू, श्रीश्री रविशंकर, या फिर दुनिया में सबसे अधिक चर्चा में रहने वाले इस्लाम के अनुयायी ही क्यों न हों । क्या धर्म के नाम पर नाम पर मजमे लगाने घंटों लंबी लंबी तकरीरें करना ही धर्म का उद्देश्य है या फिर मरते हुऐ लोगों को बचाना।

aजैसा कि आप सभी को मालूम होगा कि जब भाजपा द्वारा चलाया जा रहा राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था उस वक्त अप्रवासी भारतीयों ने विवादित जमीन पर मंदिर के निर्माण के लिये सोने की ईंट, सोने की मूर्तियां भेजी थीं, जाहिर है इससे भाजपा, वीएचपी, शिवसेना, बजरंग दल, आरएसएस, को समबल मिला हो लेकिन इतना तो साफ जाहिर हो गया था कि विदेश में रहकर भी लोगों का दिल भारत के लिये इसलिये नहीं धड़कता कि वह एक बहुसंख्यक, बहुभाषायी, बहुसांसकृतिक देश, और बहुधार्मिक देश है, बल्कि उन्हें इस बात का रंज है कि वह हिंदुराष्ट्र क्यों नहीं है ? इसीलिये उन्होंने वे आभूषण भेजे हों जो मंदिरों में मूर्तियों पर चढ़ाये जाते हैं। चलो मान भी लो की मंदिर बन गया लेकिन उसमें पूजा तो इंसान ही करेंगे न कि जानवर और जब modiइंसान आपदाओं में बह जायेंगे उनकी लाशों को चील कौऐ खा जायेंगे तो उसकी देख भाल उसकी पूजा अर्चना आखिर करेगा कौन ? ये एक बड़ा सवाल उन लोगों के सामने है जो विदेशों में रहकर भी यहां की फिजा को सांप्रदायिक बनाने के लिये खाद पानी देते हैं। दूसरी अगर देश के अंदर की बात करें तो आज के देश में इतने बाबा हो गये हैं जिनके भक्तों की संख्या लाखों में नहीं बल्कि करोड़ों में है, पिछले दिनों एक और निर्मल बाबा मीडिया में छाये रहे थे उनके भक्त भी उनके प्रवचन सुनने उनके समागम में जाने के लिये पांच से 10 हजार रुपये तक का टिकिट लेते हैं, जाहिर वहां प्रवचन सुनाये जाते होंगे तो यह भी सिखाया जाता होगा इंसान को इंसान से प्रेम करना चाहिये मुसीबत मे एक दूसरे का साथ देना चाहिये, लेकिन इब वो सारे भाषण, सारे प्रवचन, कटुवचन आखिर हैं कहां क्या अब उनकी जरूरत नहीं है, क्या अब उत्तराखंड वासी मुसीबत में नहीं है, कितने अफसोस की बात है, 125 करोड़ की आबादी में तीन लाख लोगों पर गमों का पहाड़ टूटा है मगर इसमें कोई धर्मावंलंबी उनकी सहायता के लिये आगे नहीं आया है। जबकि धर्म के ठेकेदारों के पास खजाने के गौदाम भरे पड़े हैं, अकेले काला धन विरोधी बाबा रामदेव के पास – 11000 करोड़ रूपये की संपत्ती है. आर्ट ऑफ़ लिविंग वाले श्री श्री रविशंकर के पास अनुमानित संपत्ति- 10000 करोड़ से ज्यादा है. ये वही रविशंकर हैं जो भाजपा के गृहयुद्ध मंदिर आंदोलन को अपनी मुस्कान से ही सुलझा देते हैं, सत्या साईं बाबा का नाम तो आपने सुना ही होगा जिनकी मृत्यू पर नये भगवान सचिन भी फूट फूट कर रोये थे, राष्ट्रपती से लेकर, प्रधानमंत्री तक सबने मातम मनाया था, dddउनके ट्रस्ट के पास लगभग 5 अरब रुपये है लेकिन बाढ़ पीड़ितों की मदद के नाम पर ये सबके सब ही इस तरह गायब हुऐ हैं, जैसे गधे के सर से सींग। अब जरा बात करते हैं इस्लाम और उसके अनुयायीयों की मुस्लिमों को अल्लाह की पुलिस कहा जाता है, अभी पिछले महीने ही उत्तराखंड से लगे मुजफ्फरनगर में एक बड़ा तबलीगी जमात का जलसा हुआ था, जिसमें लाखों अकीदतमंदों ने हिस्सा लिया था खूब दीन की बातों पर तकरीरें हुईं वहीं पास में देवबंद भी वहां भी लाखों की तादाद में छात्र, इस्लामी और आधुनिक शिक्षा का पाठ पढ़ते हैं, वहीं मदनी परिवार भी बसता है जिनकी एक आवाज पर ही लाखों मुसलमान दिल्ली के रामलीला ग्राउंड को भर डालते हैं, कितना अच्छा होता अगर वे मुसलमानों से अपील कर देते कि जाओ और जाकर, वहां फंसे बाढ़ पीड़ितों को निकालो, इस देश की गंगा जमूनी तहजीब को और अधिक बल मिल जाता। दिल्ली के निजामुद्दीन तबलीगी जमात के मरकज़ पर 24 घंटों हजारों की संख्या में जमाती पड़े रहते हैं जो पूरी दुनिया में दीन की दावत देते हैं, कितना अच्छा होता अगर ये जमाती वहां जाकर बाढ़ पीड़ितों की सहायता करते और दीन की दावत वहां देते। ऐसा नहीं है कि वहां पर फंसे लोगों की मदद केवल एक ही समुदाय कर रहा है, लोग मदद करते रहे हैं मगर उस अनुपात में नहीं जिस अनुपात में जलसे और जागरणों में हिस्सा लेते हैं। आयेदिन सैक्यूलरिज्म के नाम पर तकरीरें और सेमिनार आयोजित किये जाते हैं मगर जब परखने का वक्त है तो वे सारे प्रवक्ता इस कहानी से ही नदारद हैं। यहां पर एक सवाल उठना वाजिब है कि क्या सैक्यूलरिज्म, धार्मिक शिक्षा, केवल सेमिनारों, जलसे, जागरण, तक ही सीमित होकर रह गई हैं ? अगर ऐसा न होता जिस उल्लास से लोग धार्मिक कार्यकर्मों में हिस्सा लेते हैं उसी जोश के साथ लोग आपदा पीड़ितों की मदद के लिये आगे आते मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया ऐसे में एक सवाल उठना वाजिब है कि दुनिया में धर्म तो है मगर कहां ?

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Wasim Akram Tyagiवसीम अकरम त्यागी
युवा पत्रकार
9927972718, 9716428646
journalistwasimakram@gmail.com

*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC.

2 COMMENTS

  1. wasim bhai musalman kisi kam me piche rehne wale nahi jamte ulma e hind ne apni taraf se koshish shuru kardi he .log aur imdadi saman bheja he .AIMIM ne 78.75 lakh bheje hen .meerut se shahid akhlaq ne 3 truck bheje hen.aligadh se doctors ki teem pahunc gai he .kisi ka zikr aapne kisi chenal per suna.nahin kya aap bata sakte hen us zamin per jahan ak bhi masjid nahi in tablighi mullaown ko ye nikkar dhari bardasht karenge .kabhi nahi.kya tablighi jamat kisi tirust ke sahare chalti he nahi .apni jeb ke khrche se,kya khayal he aapka kya ham insaniyat nahi jante.ya hame dukh nahi he is tirasdi ka.aaj musalman hone ke nate aamir khan shahrukh khan salman khan ko kosa ja raha he kya kisi ne in arab pati babaon ka bhi nam liya.kya yahi dharm he?

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