{मृत्युंजय दीक्षित**,,}
उत्तराखंड में आई भयानक तबाही का मंजर अभी सूखने का नाम भी लेरहा है लेकिन उसकी आड़ में जिस प्रकार की राजनैतिक सुनामी आई है वह भी किसी राष्ट्रीय आपदा से कम नहीं हैै। अभी उत्तराखंड में कितनी मौतंे हुईं ,कितने लोग लापता हुये तथा कितना आर्थिक नुकसान हुआ है इसका अंतिम अंाकलन तक नहीं किया जा सका है। वहीं राजनैतिक दलों ने अपने वोट बैंक को पुख्ता करने के लिए रणनीति के तहत जुबानी जंग काफी तेज कर दी है। कांग्रेस व भाजपा ने एक दूसरे पर तीखे हमले किये हैं। प्राकृतिक आपदाएं आई हैं और उन्होंने ने भी पूर्व में कई सरकारों व दलों को हिलाकर रख दिया हैं । आप सभी को याद होगा कि आज से 16 वर्श पूर्व उड़ीसा के समुद्र तटीय इलाकों से उठे चक्रवाती तूुफान ने भरी तबाही मचायी थी। उस समय वहां पर कांग्रेस का ही अखंड राज्य था। उस समय उड़ीसा में किसी नये राजनैतिक दल के उभार का कोई संकेत नहीं था, लेकिन तूफान ने ऐसी तबाही मचायी कि कांग्रेस सरकार पर राहत के नाम पर घोटाले करने के आरोप लगे और अब फिलहाल वहां से कांग्रेस का सफाया हो चुका हैं । वहीं गुजरात में आये भूकम्प और सूखे की मार पर वहां भाजपा के षासकोें की दूरदर्षी नीतियों व प्रबंध कौषल का ऐसा असर रहा कि अब पूरे देष में गुजरात माडल लोकप्रिय हो रहा है। लेकिन वर्तमान समय में राजनीति का जो सैलाब आया है वह बहुत ही विकृत मानसिकता का परिचय दे रहा है। एक प्रकार से राहत व पुनर्वास कार्यक्रमों का श्र्रेय लेने की होड़ मच गई है। जिसका प्रथम चरण सेना के जवानो ने जीत लिया है। भाजपा नेता सुषमा स्वराज ने उत्तराखंड सरकार पर गंभीर लापरवाही बरतने का दोशी बताया और विजय बहुगुणा सरकार को बर्खास्त करने की मांग कर डाली। उन्होनंे केंद्र व राज्य दोनों ही सरकारों को नाकाम बताया। इसके बाद भाजपा नेताओ पर भी तीखा हमला बोला गया। इस सियासी घमासान की धुरी बन गये हैं गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी। प्रधानमंत्री के हवाई सर्वे के बाद जिस प्रकार से नरेंद्र मोदी ने उत्तराखंड का दौरा किया और उन्होनें केदारनाथ मंदिर के पुननिर्माण का प्रस्ताव रखा उससे कांग्रेस पार्टी के पैरो तले जमीन खिसक गयी थी। कांग्रेस पार्टी को डैमेज कंट्रोल तो करना ही था । अतः नरेंद्र मोदी के खिलाफ जिस प्रकार की षब्दावली का प्रयोग किया जा रहा है वह बहुत ही ओछी मानसिंक विकृति का परिचायक हैं। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने गुजरात के प्रस्तावों को नामंजूर करके अपने राजनैतिक दिवालिएपन का परिचय दिया है। यह एक प्रकार से गंभीर छुआछूत की बीमारी है जो जो कि आज कांग्रेस खेल रही हैं । यह भी खबर है कि उत्तरारखंड का षासन गुजराती संस्थाओं से सेवा लने से इंकार कर रहा है । आखिर कांग्रेस गुजरात के प्रति इतनी नफरत क्यों पैदा कर रही है ? पहले तो कांग्रेस ने लापरवाही बरती अब इस प्रकार की घिनौनी हरकतें कर रही हैं। केंद्रीय वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम को रूपये की गिरती हालत की तो कतई ंिचंता नहीं हैं लेकिन वे नरेंद्र मोदी को विघटनकारी कहने से बाज नहीं आ रहे। आपदा की घड़ी में आज पहले यह जरूरी है कि पीड़ितों को हर हाल में राहत पहुँचायी जाये। अभी भी बहुत से गांवों में सम्पर्क नहीं हो सका हैं । अभी भी बहुत से रास्ते खराब हैं। लोगांे की पूरी कमाई तबाह हो चुकी हैं। ऐसे लोगांे का पुनर्वास करना है। ग्रामीणों के घरों में अभी भी चूल्हा नहीं जल रहा हैं, पता नहीं अभी कितने दिन और नहीं जलेगा ? स्थितियां बेहद गम्भीर बनी हुई हैं। इस विनाषलीला के लिए प्रकृति और मानवीय भूलें दोनों ही जिम्मेदार हैं।एक प्रकार से अभी हम सभी को मिलकर नये उतराखंड का निर्माण करना ह,ै पांच नये षहर बसाने हैं। इन परिस्थितियों में ंराजनैतिक दलों को राश्ट्रीयता का अभूतपर्वू परिचय देना चाहिये था। लेकिन यहाँ तो कुछ और ही चल रहा है। पीड़ितांे को सेना के भरोसे छोड़ दिया गया है। नरेंद्र मोदी की तो खूब आलोचना हो रही है लेकिन राहुल गांधी ने जो हरकतें की हैं उसके अन्य पहलुओं पर भी ध्यान देने की आवष्यकता है। अब वहां पर षवों का जिस प्रकार से अंतिम संस्कार किया जा रहा ह,ै क्या वह उचित है? केदारनाथ धाम में पूजा- पाठ को लेकर जिस प्रकार का विवाद साधु- संतों के बीच पैदा हो गया है क्या वह उचित है ? यह हिंदू समाज का अपमान नहीं तो और क्या है ? केदारनाथ धाम के पुजारी को हटाने के लिए कांग्रेसी साजिष रची जा रही है। जिसका जवाब प्रदेष व देष की जनता देगी। प्राकृतिक आपदा व व उसके बाद की परिस्थितियों से निपटने में कांग्रेसी सोच व तंत्र पूरी तरह से नाकाम रहा है। आज हालात यह हो रहे हैं कि कांग्रेस से वरिश्ठ नेता हरीष रावत व कई अन्य लोग जनता के गुस्से का षिकार हो रहे हैं और अपने दौरे पर नहीं जा पा रहे हैं। घरों पर ही दुबक गये हैं। जब नासा ने 23 जून को ही गड़बड़ी की आषंका व्यक्त करते हुए भारत को सचेत किया था तो भी दोनांे सरकारें लापरवाह सोती रहीं ? आज सरकार के किसी भी अंग के बीच आपसी सामंजस्य नहीं हैं। सभी तंत्र अपनी अलग- अलग बातें बता रहे हैं। मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष व राश्ट्रीय आपदा तंत्र अलग आंकड़ें बता रहे हैं। बचाव एवं राहत कार्यों के दौरान वहां हो रही लूटपाट आदि को तो स्थानीय प्रषासन रोक ही सकता था। अभी जब हज यात्रा षुरू होती है या फिर रमजान का पवित्र महीना षुरू होता है तो पूरा का पूरा प्रषासन जुट जाता है। कही कोई गड़बड़ी न हो। लेकिन इस देष में तो हिंदुआंे की आस्था केे साथ बराबर खिलवाड़ किया जाता है। यहां पर भी किया जा रहा है। इसके लिए कुछ न कुछ हमारा हिंदू समाज भी दोशी है। इस पूरे घटनाक्रम में एक बात और ध्यान देने की आवष्यकता हैं। वह यह है कि वर्तमान समय में पूरा देष एकजुट होकर पीड़ितों के लिए धन एकत्र कर रहा है। दान दिया जा रहा है। लेकिन देष के जो बहुत बडें औद्योगिक घराने हैं उन्होंनें किसी भी प्रकार की बड़ी सहायता देने की कोई घोषणा नहीं की हैक्। इसी प्रकार फिल्मी दुनिया के लोग वैसे तो हर किसी न किसी घटना दुर्घटना पर टिवट करते हैंं। लेकिन उत्तराखंड त्रासदी पर कुछ लोगों नें टिवट तो किया है लेकिन कोई बहुत बड़ा दान आदि नहीं किया है और नहीं किसी गांव आदि को गोद लेने की बात कही है। यह वहीं लोग हैं जो लोग संजय दत्त के जेल जाने पर आँसू बहा रहे थे। यह वहीं लोग हैं जो अपनी हर फिल्म की सफलता की दुआएं मांगने के लिए अजमेर षरीफ पहुँच जाते हैं। किसी भी बड़े फिल्मी स्टार के पास उत्तराखंड के पीड़ितों के पास जाने का समय नहीं हैं। सभी अपनी नई फिल्मों की रिलीज में व्यस्त हैं। क्या यही मानवता है ? यही हाल खेल जगत के बडे़ लोगांे का भी है। केवल हरभजन सिंह, भुवनेष्वर कुमार, महेंद्र सिंह धोनी, षिखर धवन और एवरेस्ट फतह करने वाली अरूणिमा ने ही व्यक्तिगत रूप से सहायता देने का काम किया है। उत्तराखंड की आपदा अब पूरे देष की आपदा बन चुकी है। हर प्रांत के सैकडों नागरिक लापता हैं। यह किसी दल की आपदा नहीं हैं। आरोपों- प्रत्यारोपों का दौर चलता रहेगा। अभी फिलहाल आवष्यकता है, पुर्नवास की। वैसे भी इस प्रकार की लापरवाही का दंष देर- सबेर सत्तासीन सरकारों को झेलना ही पड़ता है । लोकसभा चुनावों का समय अब बहुत दूर नहीं रह गया है । अभी कई प्रांतों के चुनाव होने जा रहे हेैं। इसलिए अभी केवल उत्तराखंड पीडितों का पुर्नवास पुर्ननिर्माण जितनी तेजी से हो सके करना चाहिये। इससे पूर्व हमें ंमानवीय भूलों पर भी प्रायष्चित करते हुए धारीदेवी की मूर्ति को यथास्थान स्थापित करवाना चाहिये। धारीदेवी का वहां का अपना महत्व है वह उत्त्तराखंड की रक्षक देवी हैं। उनके आषीर्वाद के बिना केदारनाथ यात्रा अधूरी है और अधूरी रहेगी। इसलिये यह बहस का विशय नहीं है। यह आस्था की बात है।
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प्रेशक – मृत्युंजय दीक्षित
123,फतेहगंज गल्ला मंडी
लखनऊ( उ.प्र.)- 226018
*नोट : व्यक्त किये हुए लेखक के अपने विचार है । जरूरी नहीं की आई.एन.वी.सी इन से सहमत हो ।
*नोट : व्यक्त किये हुए लेखक के अपने विचार है । जरूरी नहीं की आई.एन.वी.सी इन से सहमत हो ।