ए.एन.खां
जलवायु परिवर्तन वर्तमान समय की सबसे प्रमुख समस्या है और पर्यावरण-नियामकों के समक्ष एक सबसे बड़ी चुनौती है। यह आर्थिक, स्वास्थ्य और सुरक्षा, खाद्य उत्पादन एवं अन्य आयामों के साथ बढ़ता हुआ संकट है । मैक्सिको की राजधानी – मैक्सिको नगर में इस वर्ष के विश्व पर्यावरण दिवस का आयोजन करने का कार्यक्रम है। इसका मुख्य विषय है – आपके ग्रह को आपकी आवश्यकता — जलवायु परिवर्तन की समस्या का समाधान करने के लिए एकजुट हों ! दिसम्बर, 2009 में कोपेनहेगन में क्योतो प्रोटोकाल हेतु अगले करार पर सहमति आगे बढाने के लिए यह देशों को प्रेरित करने के प्रति उन्मुख है। मैक्सिको ने कार्बन बाजारों के अवसरों को अपने नियंत्रण में ले लिया है और पवन, सौर, बायोगैस तथा सीडीएम (क्लीन डेवेलपमेंट मेकैनिज्म) परियोजनाओं के मामले में इसने ब्राजील के बाद द्वितीय स्थान प्राप्त कर लिया है।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने सात अरब वृक्ष अभियान नाम से एक नवीन अपेक्षाकृत अधिक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम प्रारंभ कर दिया है, जिसका लक्ष्य है – कोपेनहैगन सम्मेलन तक प्रत्येक व्यक्ति के लिए कम से कम एक वृक्ष लगाने का कार्यक्रम सम्पन्न कर लेना।
इस वर्ष के विश्व पर्यावरण दिवस का मुख्य उद्देश्य ऐसे पर्यावरण नायकों को सामने लाना है, जिन्होंने अतुलनीय कारनामे, अभियान और प्रतिबध्दता प्रदर्शित करने वाली पर्यावरण संबंधी अन्य गतिविधियां प्रदर्शित की हैं और एक सीधे-सरल विचार के माध्यम से जागरूकता पैदा की है – आपके गृह को आवश्यता है आपकी!
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने पर्यावरण परिवर्तन की समस्या का सामना करने एवं लोगों को प्रेरित करने के लिए इस कार्य हेतु सहयोग दिया है। पर्यावरण नायक लोगों से आग्रह करते हैं कि वे जो कुछ कर सकते हैं, वह करें जैसे- जब कोई व्यक्ति ब्रुश से दांतों की सफाई करता है तो उस समय बहते हुए पानी को रोकने जैसी सामान्य आदतों का पालन करना उसे भूलना नहीं चाहिए और इस प्रकार वह व्यक्ति विश्व पर्यावरण दिवस के लिए सार्वजनिक कार्यक्रम के आयोजन में अपना योगदान कर सकता है। ऐसे व्यक्ति अपने सामान्य दैनन्दिन कार्यक्रम द्वारा ऐसा करके दिखा सकते हैं कि किस प्रकार कोई व्यक्ति वातावरण को सुरक्षित बनाये रखने की दिशा में अपने कार्यों से मिसाल कायम कर सकता है। उदाहरणार्थ – विद्युत चालित ट्रेड मिल का इस्तेमाल करने की बजाय पार्क में चहलकदमी करके व्यक्ति अपने दैनिक उत्सर्जन में कई किलोग्राम की कमी ला सकता है। लगभग 80 प्रतिशत ताजा पानी सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है। ड्रिप सिंचाई जैसी सामान्य तकनीक अपनाकर ताजा पानी के इस्तेमाल में उल्लेखनीय कमी लाई जा सकती है।
प्रत्येक वर्ष लगभग 60 अरब टन से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन किया जाता है और इसका अधिकांश भाग प्राय: एक बार ही इस्तेमाल में लाया जाता है जबकि विश्व-भर में प्लास्टिक के मात्र 5 प्रतिशत से कम भाग का ही पुनर्चक्रण किया जाता है। राष्ट्रीय भौगोलिक संस्थान के अनुमानों के अनुसार हर 3 मिनट में 850 लाख टन प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रकार बेकार हो जाने वाले प्लास्टिक का अधिकांश भाग न तो पुन: उपयोग में लाया जाता है और न ही इससे जमीन को पाटा जाता है । यह सब पानी में बहकर समुद्र की ओर चला जाता है। रद्दी प्लास्टिक के टुकड़ों को गलती से खाने की चीजें समझकर खा लेने से लाखों पक्षी और समुद्री जीव काल-कवलित हो जाते हैं और पुन: खाने की वस्तुओं के रूप में ये मानव तक पहुंच जाते हैं। कैसेल परियोजना में वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों का एक दल शामिल है जो एक समान्य उद््देश्य लेकर आगे बढ रहा है – वह उद्देश्य है – समुद्र में किस तरह त्याज्य प्लास्टिक पदार्थों को पकड़ा जाए और उसका डिटाक्सिफाई कर (विषाक्तता को दूर कर) उसका पुनर्चक्रण किया जा सके।
जलवायु परिवर्तन से अनेक ऐसी चुनौतियां मिलती हैं, जो किसी तरह की राष्ट्रीय सीमाएं नहीं मानतीं। ऐसे भी देश हैं, जिन्होंने अपने देश को न केवल कार्बन डाइआक्साष्मा से प्राप्त की जाती है लेकिन परिवहन के मामले में इसे चुनौतियों का सामना करना पड़ रह रहा है।
बिजली के बल्ब का प्रचालन अब से लगभग 200 वर्ष पुराना हो चला है और लोगों का ध्यान अब ऊर्जा की बचत करने वाले बल्बों की ओर जाने लगा है। विश्व को अब हरित अर्थव्यवस्था की झलक भी मिल चुकी है। 13 खरब (ट्रिलियन) डॉलर की पूंजी वाली 300 वित्तीय संस्थाओं ने संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम पर अपने हस्ताक्षर कर दिये हैं और पुनर्नवीकरणीय ऊर्जा कारोबार में और प्रगति लाने के वास्ते संयुक्त राष्ट्र के ग्लोबल काम्पैक्ट प्रिसिपुल्स में आस्था रखने वाले उत्तरदायी निवेश के लिए पुनर्नवीकरणीय ऊर्जा कारोबार में और अधिक प्रगति लाने के उद्देश्य से ऊर्जा कारोबार के लिए हस्ताक्षर किए जा चुके हैं, जिससे 160 अरब डालर का उछाला आने की आशा है। इसमें केवल विकसित ही नहीं अपितु चीन और भारत जैसे देशों की पवन ऊर्जा-चालित कंपनियां भी सम्मिलित हैं।
वर्तमान खाद्य संकट आपूर्ति की अपेक्षा मुख्यतया मूल्यों से जुड़ा हुआ है। पिछले लगभग 50 वर्षों के दौरान, अन्य सभी तथ्यों के अतिरिक्त उत्पादन बढ़ाने पर अत्यधिक जोर दिया गया है। समुद्र में अपेक्षाकृत कम आक्सीजन युक्त क्षेत्रों में – मृत क्षेत्रों में (जिनमें मछलियां या अन्य समुद्री जीव-जन्तु या तो काल-कवलित हो जाते हैं या पलायन कर जाते हैं), प्राय: कृत्रिम उर्वरकों के दुरुपयोग के कारण उनकी ऐसी स्थिति हो जाती है।
बदलते मौसम की प्रक्रियाओं के कारण खाद्यान्न उत्पादन पर असर पड़ता है, वर्षा की अनिश्चितता, समुद्र तल के विस्तार, समद्रतटीय ताजा जल भंडार में कमी आने, बाढ की विभीषिका और वातावरण की ऊष्मा बढ़ने के कारण अनेक परिवर्तन आते हैं। अमेज़न के अधिक वर्षा वाले वनों तथा आर्कटिक टुंड्रा जैसे पर्यावरण विविधता वाले क्षेत्रों में गर्मी और शुष्कता के कारण अनेक उल्लेखनीय परिवर्तन पाए जा रहे हैं। पहाड़ों के ग्लेशियरों के पिघलने, उनके और पीछे की ओर हटने जैसी प्रवृत्तियां प्राय: शुष्क वनों में पाई जाती हैं। हार्जा प्रणालियों में परिवर्तन लाकर आने वाले दिनों में अनेक गंभीर खतरों से युक्त जलवायु परिवर्तनों को काफी हद तक रोका जा सकता है।
कुछ लोगों के लिए उष्णकटिबंधीय वनों का आशय केवल टिम्बर और लट्ठों के लिए वृक्ष-पुंजों तक ही सीमित है। ये वृक्ष विकसित देशों के कार्बन-उत्सर्जन का अवशोषण करते हैं। यदि उनकी गणना अपेक्षाकृत ऐसी प्रबुध्द आर्थिक प्रणाली से करें, जिसमें प्रकृति द्वारा प्रदत्त कुल विकास उत्पादन सम्मिलित हों और जिसमें मोटर कारों, टेलीविजन सेटों तथा मा के कारण विश्व अर्थव्यवस्था में अत्यधिक विघटन आयेगा – अतीत तथा वर्तमान के ह्रासों के भविष्य पर कुछ भी असर नहीं पड़ेगा। इसके विपरीत, जलवायु परिवर्तन संबंधी अन्तरशासकीय कार्यदल के अनुमानों के अनुसार, 30 वर्षों की अवधि में विश्व जीडीपी पर केवल 0.1-0.2 प्रतिशत का मामूली असर ही पड़ सकेगा।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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