**क्या वास्तव में ईरान पर मंडरा रहा है सैन्य कार्रवाई का ख़तरा ?

**तनवीर जाफरी

एक ओर दुनिया के कई देश जहां परमाणु तकनीक पर आधारित उर्जा संयंत्रों को बढ़ावा देकर सस्ती एवं पर्याप्त बिजली के उत्पादन की दिशा में काम कर रहे हैं, वहीं ईरान द्वारा चलाया जा रहा परमाणु कार्यक्रम गत् एक दशक से अमेरिका, इज़राईल तथा इनके सहयोगी देशों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। हालांकि ईरान द्वारा अधिकारिक रूप से बार-बार यह कहा जा रहा है कि वहां चलने वाले परमाणु शोध कार्यक्रम व परमाणु संयंत्र शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए हैं तथा इनका मकसद उर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होना मात्र है। परंतु खासतौर पर अमेरिका व इज़राईल, ईरान के इस दावे को मानने को किसी भी कीमत पर तैयार नहीं हैं। संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत् काम करने वाली परमाणु सुरक्षा एजेंसी आइएईए भी ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर कई बार अपनी चिंता ज़ाहिर कर चुकी है। गत् दिनों एक बार फिर आइएईए ने अपने एक ताज़ातरीन प्रस्ताव में कहा है कि ईरान अपने देश में चल रहे परमाणु कार्यक्रमों के संबंध में फैली शंकाओं व इनसे जुड़े सवालों का यथाशीघ्र उत्तर दे।

दरअसल परमाणु सुरक्षा एजेंसी आइएईए का कहना है कि ईरान के परमाणु शोध कार्यक्रम में कुछ ऐसे कंप्यूटर मॉडल शामिल हैं जिनकी सहायता से केवल परमाणु बम का बटन ही विकसित किया जा सकता है। आइएईए की इसी ताज़ा रिपोर्ट ने अमेरिका व इज़राईल के संदेह को बल प्रदान किया है तथा इस रिपोर्ट के बाद ही अमेरिका ने यह कहा है कि ईरान द्वारा परमाणु कार्यक्रम के शांतिपूर्ण उद्देश्यों के दावों पर संदेह हो रहा है। दूसरी ओर ईरान की ओर से यह कहा जाता रहा है कि आइएईए की इस प्रकार की रिपोर्ट पूरी तरह से गैर पेशेवर, असंतुलित तथा राजनीति से प्रेरित है। तथा यह रिपोर्ट अमेरिका के दबाव में आकर तैयार की गई है। ईरान का कहना है कि आइएईए अमेरिका की कठपुतली के रूप में काम करता है। आइएईए की इस ताज़ातरीन रिपोर्ट के आने के बाद एक बार फिर ईरान ने दोहराया है कि उसका कार्यक्रम पूरी तरह से शांतिपूर्ण है तथा मात्र उर्जा पैदा करने के उद्देश्य से चलाया जा रहा है। ईरानी राष्ट्रपति अहमदीनेजाद ने एक बार फिर ज़ोर देकर अपनी बात को पुनरू दोहराया है कि ईरान अपने देश में चल रहे परमाणु कार्यक्रम को हरगिज़ नहीं छोड़ेगा तथा यह कार्यक्रम पूर्णतयः शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए ही हैं।

परंतु आइएईए द्वारा जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक 2008-2009 के दौरान ईरान द्वार किए गए परमाणु संबंधी शोध चिंता का विषय हैं। रिपोर्ट के अनुसार कुछ शोध तो ऐसे हैं जिनका इस्तेमाल परमाणु विस्फोट के अतिरिक्त अन्य किसी काम के लिए समझ में ही नहीं आता। और इसी रिपोर्ट के आधार पर अमेरिका ने यह कहा है कि ईरान बार-बार दुनिया को यह विश्वास दिला पाने में विफल रहा है कि उसके द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए हैं। इन्हीं समाचारों के मध्य पिछले दिनों ईरान के विरुद्ध सैन्य कार्रवाई किए जाने की खबरों ने ज़ोर पकड़ लिया। अमेरिका व इज़राईल दोनों सैन्य कार्रवाई के पक्षधर दिखाई दिए जबकि रूस व चीन जैसे देश न तो ईरान के विरुद्ध सैन्य कार्रवाई के पक्ष में नज़र आए न ही संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से ईरान पर कोई नया प्रतिबंध लगाए जाने के पक्षधर रहे।

इन खबरों ने पिछले दिनों बहुत ज़ोर पकड़ा कि ईरान स्थित परमाणु ठिकानों को निशाना बनाकर अमेरिका व इज़राईल ईरान पर हवाई हमले कर सकते हैं। परंतु इस प्रकार के किसी संभावित हमले को लेकर अमेरिका में ही मतभेद सामने आए। अमेरिकी रक्षा मंत्री लियोन पनेटा ने चेतावनी दी कि ईरान पर सैन्य कार्रवाई के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। और यह गंभीर परिणाम न सिर्फ मध्य-पूर्व देशों को भुगतने पड़ सकते हैं बल्कि इस क्षेत्र में तैनात अमेरिकी फौजों को भी इसके गंभीर नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं। पनेटा ने यह भी कहा कि इस प्रकार के हमले से ईरान का परमाणु कार्यक्रम रुकेगा तो नहीं, हां इसमें कुछ देरी ज़रूर हो सकती है।

उधर अमेरिका व इज़राईल मीडिया में पिछले दिनों चली ईरान पर हमलों की चर्चा के बीच ईरान ने भी जवाबी चेतावनी जारी की है। ईरानी संसद के सुरक्षा आयोग के प्रमुख परवेज़ सरवरी ने कहा है कि यदि इज़राईल ने ईरान के विरुद्ध किसी प्रकार की गलती करने का साहस किया तो इज़राईल को मिट्टी के ढेर में बदल देंगे। उन्होंने यहां तक कहा कि वे चाहते हैं कि इज़राईल, ईरान के विरुद्ध किसी प्रकार की गलती करने का साहस करे और इसके जवाब में ईरान इज़राईल को अपनी ताकत व तकनीक का प्रयोग करके दिखाए। कुछ समय पूर्व राष्ट्रपति अहमदीनेजाद भी इज़राईल को चेतावनी भरे लहजे में यह कह चुके हैं कि वे इज़राईल का नामो-निशान दुनिया के नक्शे से मिटा देंगे। कहा जा सकता है कि ईरान के ज़िम्मेदार नेताओं की ओर से दी जाने वाली इस प्रकार की धमकियां भी अमेरिका व इज़राईल जैसे ईरान विरोधी देशों के इन संदेहों की पुष्टि करती हैं कि ईरान परमाणु हथियार संपन्न देश हो रहा है।

उपरोक्त हालात के मद्देनज़र प्रश्र यह है कि क्या ईरान पर वास्तव में युद्ध के बादल मंडरा रहे हैं? और यदि ऐसा है तो इस वातावरण को उर्जा कहां से प्राप्त हो रही है? इस विषय की समीक्षा के लिए हमें ईरानी परमाणु कार्यक्रम के अतिरिक्त दो और प्रमुख बातों पर नज़र डालनी होगी। एक तो 2009 में ईरान में हुए राष्ट्रपति पद के विवादित चुनाव तथा दूसरे अरब जगत में वर्तमान समय में तमाम शासकों के विरुद्ध फैला जनविद्रोह। निश्चित रूप से यह दोनों ही बातें ईरान के विरुद्ध सैन्य कार्रवाई किए जाने जैसे वातावरण को उर्जा प्रदान कर रही हैं। 2009 में हुए राष्ट्रपति चुनाव के परिणाम आने के बाद ईरान के इतिहास में पहली बार मतदान में बड़े पैमाने पर धांधली का आरोप लगाते हुए विपक्षी नेता मीर हुसैन मुसावी के नेतृत्व में तेहरान के आज़ादी चौक पर लाखों लोगों ने प्रदर्शन किया। इन प्रदर्शनकारियों ने जहां चुनाव में बड़े पैमाने पर धांधली का आरोप लगाया, वहीं इन प्रदर्शनकारियों ने देश में पुनरू राष्ट्रपति चुनाव कराने की मांग भी की। 2009 के बाद पिछले दिनों अरब जगत में फैले जनविद्रोह से प्रभावित होकर एक बार फिर यही प्रदर्शनकारी वर्तमान अहमदीनेजाद सरकार के विरुद्ध विद्रोही तेवर लेकर सडक़ों पर उतरे। ऐसे प्रदर्शनों को बार-बार ईरान सरकार द्वारा बलपूर्वक कुचलने की कोशिश की गई। इनमें जहां दो लोग मारे गए वहीं सैकड़ों लोग बुरी तरह से घायल भी हुए।

ईरान सरकार अपने देश में होने वाले ऐसे विरोध प्रदर्शनों को यह कहकर कुचलने की कोशिश करती है कि यह प्रदर्शनकारी ईरान के दुश्मन देशों अर्थात् अमेरिका व इज़राईल से उर्जा प्राप्त कर रहे हैं। केवल ईरान सरकार की ओर से ही ऐसे बयान नहीं आते बल्कि इज़राईली प्रधानमंत्री बेनजामिन नेतनयाहू का भी यही मानना है कि अरब जगत में कई देशों में वहां के शासकों के विरुद्ध फैला विद्रोह ईरान में भी इस्लामी क्रांति का रूप ले सकता है। उधर ईरानी संसद में नेजाद समर्थक बहुसंख्यक सांसदों का तो यहां तक मत है कि ईरान में विद्रोह की साज़िश में लगे विपक्षी नेताओं को मार ही डालना चाहिए। ज़ाहिर है इस प्रकार के अंदरुनी हालात ईरान के दुश्मन देशों को कुछ वैसी ही उर्जा प्रदान करेंगे जैसी कि इराक, अफगानिस्तान व लीबिया में गत् कुछ वर्षों में देखने को मिले हैं। अर्थात् अमेरिका ने जहां-जहां सैन्य हस्तक्षेप किया, वहां-वहां उसे स्थानीय लोगों की सहायता ज़रूर मिली। और यही भीतरी विद्रोह अथवा विरोध की स्थिति जहां अमेरिका के तेल संपदा पर कब्ज़ा जमाने के अपने दूरगामी लक्ष्य के लिए सहायक साबित हुई, वहीं यही स्थिति उन देशों की अपनी बर्बादी का कारण भी बनी।

हां इतना ज़रूर है कि अफगानिस्तान व इराक में ज़मीनी सैन्य हस्तक्षेप के बाद अमेरिका को जान व माल की जो श्असहनीय्य क्षति उठानी पड़ी है, उसको मद्देनज़र रखते हुए भले ही अमेरिका स्वयं ईरान में ज़मीनी सैन्य हस्तक्षेप से कुछ हिचकिचाए। क्योंकि यदि ऐसी स्थिति पैदा हुई तो संभवतः ईरान के लोग अपनी धरती पर अमेरिकी घुसपैठ का इराक व अफगानिस्तान से भी कहीं अधिक बढक़र विरोध करेंगे। और अमेरिका के पिछले अनुभव उसे स्वयं इस बात की इजाज़त नहीं देंगे कि वह पुनः अपनी पिछली गलतियों की पुनरावृत्ति करे। इन सबसे अलग अमेरिका पर छाया आर्थिक संकट भी उसके सामने है। ऐसे में प्रश्र यह है कि क्या सचमुच ईरान पर सैन्य कार्रवाई का खतरा मंडरा रहा है? या फिर यह महज़ ईरान पर भारी दबाव बनाए जाने की अमेरिकी व इज़राईली रणनीति का एक हिस्सा है?

**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author  Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost  writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
(Email : tanveerjafriamb@gmail.com)

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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC

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