– तनवीर जाफ़री –
केंद्र सरकार द्वारा पिछले दिनों बनाए गए नागरिकता संशोधन क़ानून तथा सरकार द्वारा चलाई जा रही राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर प्रक्रिया के विरुद्ध इस समय पूरे देश में उबाल सा आया हुआ है। ज़बरदस्त ठण्ड व शीतलहरी की परवाह किये बिना देश के करोड़ों नागरिक प्रतिदिन सड़कों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे है।केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के अनेक देशों में भी नागरिकता संशोधन क़ानून तथा राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के विरुद्ध अप्रवासी भारतीयों द्वारा ज़ोरदार आवाज़ बुलंद की जा रही है। नागरिकता संशोधन क़ानून में अफ़ग़ानिस्तान,पाकिस्तान व बंगलादेश के मुसलमानों के अतिरिक्त 6 चुनिंदा धर्मों के लोगों को भारत की नागरिकता देने पर विचार करने की गृह मंत्री अमित शाह की घोषणा ने भारत के आम लोगों को ही नहीं बल्कि कई अन्य देशों को भी नाराज़गी का मौक़ा दे दिया है। इतना ही नहीं बल्कि देश और दुनिया के लोग अब भारत वर्ष के उन मूल सिद्धांतों पर भी सवाल उठाने लगे हैं जिसके लिए भारतवर्ष की कीर्ति पताका अब तक पूरी दुनिया में फहराती रही है। आज इन नए नवेले,अति विवादित तथा समाज को विचलित व विभाजित करने वाले क़ानूनों को लेकर सरकार तरह तरह की बातें कर रही है।
प्रधानमंत्री तथा गृह मंत्री द्वारा इस संबंध में दिए जाने वाले परस्पर विरोधाभासी बयानों के चलते देश को सरकार की नीयत पर संदेह हो रहा है। देश और दुनिया के लोगों ने इस बात की कल्पना भी नहीं की थी कि गाँधी का वह देश जो पूरे विश्व को ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का सन्देश दिया करता था, जो देश संसार को शांति,सत्य व अहिंसा के मार्ग पर चलने की सीख दिया करता था वही देश धर्म के आधार पर नागरिकता संशोधन क़ानून बना रहा है? वही देश आज राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर में नाम दर्ज करने हेतु देश के लोगों से भारतवासी होने के दस्तावेज़ी सुबूत मांग रहा है ? और धर्म के आधार पर यह तय करने की तैयारी कर रहा है कि किसका नाम राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर में दर्ज होगा और किसका नहीं ? एन आर सी के जो परिणाम अब तक सामने आए हैं उनमें यदि हम केवल असम राज्य की ही बात करें तो इस प्रक्रिया में वहां अब तक लगभग 1600 करोड़ रूपये ख़र्च किये गए हैं। और इसका परिणाम भी यह हुआ है कि मांगे जा रहे काग़ज़ात पेश न करपाने की वजह से लगभग 19 लाख लोग राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर में अपना नाम दर्ज नहीं करवा सके। इनमें 16 लाख लोग केवल हिन्दू धर्म से हैं जबकि शेष 3 लाख लोगों में मुस्लमान व अन्य धर्मों के लोग शामिल हैं।
क्या यह सभी 16 लाख लोग जो केवल हिन्दू धर्म से है,वे बांग्लादेशी हैं ? या अन्य 3 लाख लोगों को इसलिए बांग्लादेशी माना जाएगा क्योंकि वे अपनी नागरिकता संबंधी सुबूत नहीं दे सके ? ग़ौर तलब है कि इसी एन आर सी के प्रयोग में अब तक कई लोग काग़ज़ात पूरा करने की परेशानियों से तंग आकर व भयभीत होकर अपनी जान भी दे चुके हैं। बड़े आश्चर्य का विषय है कि देश की जो सरकारें स्वयं को पूरे देश के लोगों का जनप्रतिनिधि बताती हैं उन्हीं को ग़रीब देशवासियों की इस हकीक़त का अंदाज़ा नहीं कि आज भी करोड़ों लोग जिनके सिरों पर छत नहीं,जिनके तन पर कपड़े नहीं,वो करोड़ों लोग जो हर साल कभी बाढ़ के चलते तो कभी सूखे की वजह से घर से बेघर होते रहते हैं,जिनके पास किसी प्रकार के बैग या बॉक्स नहीं होते,जो यह तक नहीं जानते कि जन्म-मृत्यु व विवाह प्रमाणपत्र क्या होते हैं,कैसे बनते हैं और उनकी अहमियत क्या है,उनसे आप भारतीय होने के दस्तावेज़ तलाब कर रहे हैं ?कोई इन हिंदूवाद का दंभ भरने वाले नेताओं से यह पूछे कि करोड़ों बाबा वेशधारी जो देश भर के मंदिरों व मठों में विराजमान हैं,ट्रेनों में फ़्री यात्राएं करते हैं,रेलवे स्टेशनों की ‘शोभा’ बढ़ाते हैं उनसे आप नागरिकता प्रमाणित करने को कहेंगे? अन्यथा वे बांग्लादेशी या पाकिस्तानी ठहराए जाएंगे ? यदि यह मान लिया जाए कि सीमा की कमज़ोर निगरानी या दुर्गम भौगोलिक परिस्थितिवश देश में चारों ओर से 2 या तीन प्रतिशत लोग शरण पाने की ग़रज़ से या रोज़गार के चलते घुसपैठ कर भारत में अनाधिकृत रूप से प्रवेश कर भी गए हैं तो उन दो या तीन प्रतिशत लोगों की शिनाख़्त करने के लिए आप पूरे भारत के 98 प्रतिशत लोगों से ही उनके नागरिकता के प्रमाण मांग बैठेंगे ? यह कहाँ की अक़्लमंदी और न्याय है ? क्या सरकार की मंशा पूरे देश को 5-7 वर्षों तक उसी तरह लाइनों में खड़ा करने की है जैसे नोटबंदी के समय खड़ा किया था?
दरअसल सरकार एन आर सी रुपी अपने ही बने जाल में फँस गयी दिखाई दे रही है। इसीलिए राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर प्रक्रिया की कमियों को दूर करने के लिए ही नागरिकता संशोधन क़ानून का सहारा लिया गया है। और धर्म आधारित व संविधान विरोधी होने की वजह से देश के धर्मनिरपेक्ष लोगों ने विशेषकर छात्रों व युवाओं ने व गांधीवादी सोच रखने वाले संविधान प्रिय वर्ग ने इसे अस्वीकार कर दिया। परिणाम स्वरुप आज देश के लोग बड़ी संख्या में इन क़ानूनों का विरोध करते सड़कों पर दिखाई दे रहे हैं। देश के कई प्रमुख शहरों में इंटर नेट सुविधा बंद कर दी गई है। अनेक स्थानों पर धारा 144 लागू है। कई संवेदनशील जगहों पर स्कूल व कॉलेज बंद हैं । कहीं सड़कों पर जाम लगे हैं कहीं बच्चे,बुज़ुर्ग व महिलायें विचलित व परेशान हैं तो कहीं छात्रों की शिक्षा चौपट हो रही है गोया देश के भविष्य पर ही संकट मंडराता नज़र आ रहा है। इस आंदोलन के दौरान उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों से पक्षपात पूर्ण व पूर्वाग्रही भाषा बोलते हुए पुलिसकर्मियों के वीडिओ वायरल हो रहे हैं। कई जगह छोटे छोटे बच्चों की बर्बरतापूर्ण पिटाई की ख़बरें आ रही हैं तो कानपूर में लोगों की निजी संपत्ति के साथ तोड़फोड़ करते व नुक़सान पहुंचाते वीडीओ भी दिखाई दे रहे हैं। एक ओर जहाँ बड़े पैमाने पर युवाओं की गिरफ़्तारी की ख़बरें आ रही हैं वहीँ दूसरी तरफ़ स्वयंसेवक वकीलों की फ़ौज भी इन आंदोलनकारियों की क़ानूनी सहायता के लिए तैय्यार हो चुकी है। कहा जा सकता है कि यह आंदोलन सत्तर के दशक के जे पी आंदोलन से भी बड़ा आकर ले चुका है। कुछ विश्लेषक तो इस आंदोलन की तुलना स्वतंत्रा के आंदोलन से भी कर रहे हैं।
उधर एनआर सी पर मोदी व शाह के विरोधाभासी बयान आ रहे हैं । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि एन आर सी पर कोई चर्चा नहीं हुई है। सरकार विपक्ष पर इस संबंध में झूठ प्रचारित करने का आरोप लगा रही है जबकि गृह मंत्री अमित शाह का कहना है कि एन आर सी लागू होकर रहेगी। जबकि विपक्ष सत्तापक्ष पर देश से झूठ बोलकर गुमराह करने का आरोप लगा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ़रमाया कि देश में एक भी डिटेंशन कैंप नहीं है, डिटेंशन सेंटर की ख़बर कांग्रेस और अर्बन नक्सलियों द्वारा उड़ाया गया झूठ है। जबकि असम में ऐसे कई डिटेंशन कैंप मौजूद हैं और नए डिटेंशन सेंटर बनाए भी जा रहे हैं। इसी पर विपक्ष का कहना है कि प्रधानमंत्री झूठ बोल रहे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने तो यह तक कह दिया कहा -आर एस एस का प्रधानमंत्री भारत माता से झूठ बोलता है। एक ओर इन प्रदर्शनों में भाजपा नेता कथित रूप से ‘टुकड़े टुकड़े गैंग’ का हाथ बता रहे इसके जवाब में पूर्व भाजपा नेता यशवंत सिन्हा का कहना है कि भारत के सबसे ख़तरनाक टुकड़े टुकड़े गैंग में सिर्फ़ दो लोग हैं ‘दुर्योधन’ और ‘दुश्शासन’। और वे दोनों ही बी जे पी में हैं,उनसे सतर्क रहें। बहरहाल भारतवासी बड़ी संख्या में इन क़ानूनों के विरुद्ध सड़कों पर उतर कर उनकी भारतीयता का सुबूत मांगने वालों को राहत इंदौरी के इस शेर के माध्यम से बता रहे हैं कि-
‘सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में।
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है’ ।।
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About the Author
Tanveer Jafri
Columnist and Author
Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.
He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
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