डॉ. मंजरी शुक्ल की कहानी “सौगात “
– सौगात –
पंद्रह साल की मुनिया अब इतनी भी नासमझ नहीं थी जो यह न समझ पाए कि उसके चेहरे पे इतना रंग रोगन किसलिए किया जा रहा हैं I जब उसकी मौसी ने उसे नख से शिख तक सावन में लगे गाँव के मेले से लाये गए सस्ते और चमकीले कपड़ो से सजा दिया और अपनी ही कुशलता पर मुग्ध हो गई , तो अपनी बड़ी बड़ी आँखे तरेरते हुए उसे वही बैठने की हिदायत देकर अपने नकली बालों की चोटी लहराती चल दी I मुनिया ने बेबसी से कमरे के चारों ओर देखा और कहीं से भी भागने का रास्ता ना पाकर चुपचाप आँसूं भरी आँखों से आईना देखने लगी जिसके किनारे जगह जगह से चटके हुए थे I उसने बहुत देर तक तो किसी तरह अपनी सिसकियाँ रोकी पर कुछ ही पल बाद वो बदबू सीलन भरा कमरा उसके रोने की आवाज़ से दहल उठा और उस कमरे ने हमेशा की तरह घबराकर अपनी आँखें मींच ली I सालों से असहाय और गरीब बच्चियों पर यह अत्याचार देखते हुए वह बूढा हो चला था और अब उसकी आत्मा रुई के फाहों की तरह नाचती हुई हवा में बिखरने ही वाली थी I उधर आईने के सामने बैठी मुनिया दुनिया के सभी कमजोर और मजबूर लोगों की तरह केवल उस परम शक्ति को याद कर रही थी जो विरासत में उसकी माँ के द्वारा दी गई उसके ह्रदय में हमेशा से विद्धमान थी और इतनी पास कि वो उसकी तकलीफ को बड़ी आसानी से सुन सकती थी , देख सकती थी और महसूस भी कर सकती थी I अचानक उसकी माँ का खूबसूरत और हमेशा उदास रहने वाला चेहरा उसकी आँखों के सामने घूम गया जो हमेशा उससे कहती थी कि जब भी किसी मनुष्य को तकलीफ होती हैं तो वो अपने जान पहचान के सारे घरों के दरवाजे खटखटा कर अपना रोना सुनाता हैं और बदले में उनसे आशा करता हैं कि सब उसके दुःख से दुखी हो जाये और अपना तन मन धन सब उस पर लुटा बैठे, पर ऐसा नहीं होता हैं I सभी अपनी तकलीफों और परेशानियों से पहले ही इतना त्रस्त होते हैं कि दुसरे के दुःख को सुनकर अपना दुःख याद करने लगते हैं और ऊपर से केवल हुंकार भरते हैं I जब वह आदमी अपना दुखड़ा सुनाकर चला जाता हैं तो आधे उस पर हँसते हैं और बाकी उसकी ही कमियां और मीन मेख निकालते हैं I और यह कहते हुए माँ ने मुनिया का माथा बड़े ही प्यार से चूमकर कहा था कि जब भी तुम किसी परेशानी में पड़ना तो केवल इश्वर के आगे ही रोना क्योंकि वही तुम्हारी सहायता करेगा.. हर पल , हर जगह और हर उस वक़्त जब तुम उसे सच्चे मन से पुकारोगी …. पर कभी अपने विश्वास को उस पर से डगमगाने नहीं देना I क्योंकि वो तुम्हारी परीक्षा लेगा और उसकी यह बात याद करते ही उसे माँ की खुरदुरी एड़िया और बालों में पकती सफेदी याद आ गईं जो हमेशा नंगे पाँव नियम से शिव जी के मंदिर जाकर शिवलिंग पर जल चढ़ाया करती थी I जब भी कभी रात में उसकी आँख खुली उसने माँ को शिव जी के छोटे से फोटो के आगे “ॐ नमः शिवाय” का जाप करते हुए रोते ही पाया I वो बहुत छोटी थी इसलिए शायद कभी पूछ नहीं पाई कि क्या ईश्वर की परीक्षा केवल दुखों से भरी ही होती हैं ? क्या वो अपने भक्त को सुख देकर ये नहीं देख सकता कि भक्त उन्हें याद करता हैं या नहीं I पर वो बिना कुछ बोले माँ कि गोदी में जाकर लेट जाती और उसके गर्म आँसूं अपने चेहरे पर रात रात भर महसूस करती थी I उसे याद आया कि उसकी माँ बहुत अच्छा नाचती थी जब वो सभी बेडनियों कि तरह राई नृत्य करती थी तो सभी नाचने वालिया उसके आगे फीकी नज़र आती थी और देखने वाले आश्चर्य से दाँतों तले उँगलियाँ दबा कर उसकी माँ को एकटक देखते रहते I माँ जब सोलह सिंगार करके दुल्हन की तरह अपनी सितारों से जगमग करती हुई साड़ी पहनती तो वह ख़ुशी के मारे उसके गले लग जाती और उसका चेहरा एकटक देखती रहती I माँ प्यार से उसका माथा चूमकर उसका हाथ पकड़ कर अपने साथ उस जगह ले जाती जहाँ पर वह घंटो घूंघट डाल कर मस्ती के साथ नृत्य करती I सावन में थिरकते मोर का अपने खूबसूरत पंखों को फैलाकर नाचना उसे हमेशा याद आता जब भी वह अपनी माँ को नाचते देखती I माँ तकली की तरह तेजी से घूमती और अपने हाथों को बड़ी ही अदा से अपने हाव भाव के साथ घुमाती I घर लौटते समय रास्ते भर वह माँ से ढेरों बाते करती और जब वह राई नृत्य का मतलब पूछती तो माँ उसकी लटों को सँवारते हुए मुस्कुराकर कहती – ” कृष्ण की प्रिय ,राधिका के नाम से ही राई शब्द आया हैं और राधिका के नृत्य से ही हमारा ये राई नृत्य बना I फिर माँ जैसे कही खो जाती और पनीली आँखों से कहती पर बड़ी ही अजीब कहानी हैं री हम बेडनियों की …राधा तो अपने प्रेमी ,अपने सखा कृष्ण को रिझाने के नृत्य करती थी और हमें इन पापी राछ्सों के आगे दो निवाले पेट में डालने के लिए अपना शरीर बेचकर नाचना पड़ता हैं I
मैं माँ की कोई बात नहीं समझ पाती पर पता नहीं क्यों दिए की मद्धिम जलती हुई लौ में मुझे उसका चेहरा बहुत पवित्र लगता I फिर एक गहरी सांस लेकर वो धीमे से कहती – ” ये नाच मशाल की रौशनी में होता हैं ना मुनिया और उसे नहीं बुझने देने के लिए उसमे राई डालना पड़ता हैं I पर तुझे पता हैं कि जब उस मशाल में राई पड़ती हैं तो आग मेरे पैरो में लगाई जाती हैं ताकि मैं बिना बुझे निरंतर जलती हुई इन पापियों को अपने रूप की रौशनी से चकाचौंध करू I ”
“पर माँ नाचना तो मुझे भी बहुत अच्छा लगता हैं गोल गोल फिरकी जैसा घूमना , जब मैं बड़ी हो जाउंगी तब मैं भी तुम्हारी तरह नाचूंगी” मैंने एक दिन ऐसे ही उसकी गोद में लेते हुए लाड़ में आ कर कह दिया I ”
यह सुनते ही माँ मुझसे छिटककर दूर खड़ी हो गई जैसे उसे करेंट लग गया हो और ऊँचे स्वर में बोली- ” कभी ऐसे शब्द मेरे जीते जी अपने मुहँ से न निकालना तू ….फिर अचानक use जोरो से जैसे खांसी का दौरा उठा
वह खांसते -खांसते बेदम हो गई और उसने हाँफते हुए कहा ” लेकिन मैं हमेशा तो जिन्दा रहूंगी नहीं तो फिर ये भेड़िये तुझे नोच डालेंगे और यह कहते हुए उसका गोरा चेहरा गुस्से से तमतमा गया और मुझे वो आनन् फानन में अपनी गोदी में उठाकर अपनी बहन के घर की ओर दौड़ पड़ी I मेरी मौसी बरामदे में बैठी हमेशा की तरह पान चबाते हुए यहाँ वहाँ ताँक- झाँक कर रही थी I हमें इतनी रात में आया देखकर वो कुछ पूछ पाती इससे पहले ही माँ उसके पैरो पर गिर कर रोते हुए बोली- ” तुझे तो पता हैं मुझे तेपेदिक जैसी जानलेवा बीमारी हो गईं हैं हैं और मेरा मन मुझसे कह रहा हैं कि मैं बहुत जल्दी मुनिया का साथ छोड़ जाउंगी I ”
मौसी का चेहरा यह सुनकर फक पड़ गया और वह भर्राए गले से बोली-” तो तू ये सब कहने आधी रात के बखत मेरे पास आई I सुबह भी तो आ सकती थी मैं भला कहाँ जा रही थी ?.”
“सुबह तक का मेरे पास समय नहीं हैं I मेरी जमीन और खेत मैंने तेरे नाम पर कर दिए हैं तू उन्हें रख ले और ये जेवर बस मेरी मुनिया को इसके ब्याह पर मेरी निशानी के तौर पे देना I ”
माँ उसका हाथ पकड़कर लगभग गिड़गिड़ाते हुए बोली
“ब्याह” शब्द सुनते ही जैसे मौसी को जैसे काठ मार गया I हकलाते हुए स्वर में थूक निगलते हुए कहा – ” पर ये तो हमारी तरह बेड़नी बनेगी ना , इसके ब्याह का ख्याल भी तेरे मन में कहाँ से आ गया ? ”
यह सुनकर माँ ने अपनी ओढ़नी में से नोटों का मोटा बण्डल निकाल कर मौसी के हाथ में रख दिया और भीगे स्वर में बोली-“ये दिखने में भले ही कागज़ के बने नोट हैं पर ये मेरे शरीर के नुचे हुए माँस के टुकड़े हैं जो मैं तुझे देती हूँ I तू सब कुछ रख ले बस एक वचन दे दे कि मेरी बेटी का ब्याह किसी अच्छे से लड़के से जरुर करा देगी और इसे इज्जत की ज़िन्दगी बसर करने देगी I मौसी ने जेवर की पोटली का आँखों में ही मुआयना करते हुए नोटों का बण्डल अपने पल्लू में बाँध लिया और अपने डरावने लाल -लाल दांतों को दिखाते हुए बोली-” तू बिलकुल चिंता मत कर I तेरी मोड़ी का ब्याह भी करुँगी और इसे अपने पैरो पर खड़ा भी करुँगी I.”
पर जैसे यमराज वहीँ कहीं चोरी छुपे खड़ा इन्ही शब्दों की बाट जोह रहा था I माँ ने मुझे भरपूर निगाह से देखा और धीरे से आखें बंद कर ली I मुझे लगा माँ रोते रोते थक गई और सो गई इसलिए मैं भी धीमे से जाकर उनकी कमर में हाथ डालकर उनसे लिपट कर आराम से लेट गई और मेरी मौसी तुरंत तरह -तरह के जेवर पहन कर देखने लगी और हँसते हुए नोट गिनने लगी I सुबह मेरी नींद तब खुली जब मौसी ने घड़ियाली आँसू बहाकर सारा घर सर पर उठा रखा था और माँ की मौत से ज्यादा अपनी गरीबी का मातम मना रही थी I
वह खड़े लोगो से ये तमाशा नहीं देखा गया और उन्होंने चंदा इकठ्ठा करके माँ की अर्थी का बंदोबस्त किया I जब उसे ले जाने लगे तो मैं पागलो की तरह उसके पीछे दौड़ी पर मौसी ने मुझे कस कर पकड़ लिया I थक हारकर मैं रोते बिलखते हुए सो गईं और जब होश आया तो गर्म चिमटे की मार के साथ ही मेरी बदनसीबी का सिलसिला शुरू हो गया I जो नाच मेरे रोम- रोम में प्राणों का संचार कर देता था , उसी के नाम से मुझे घ्रणा हो गई I मेरी माँ के पैसो पर ऐश करती हुई मौसी को मेरी माँ अनजाने में एक मुफ्त की नौकरानी भी दे गई थी I सिर पर छत का आसरा जानकार मैंने इस नरक में ग्यारह साल ग्यारह जन्मों की तरह कैसे गुज़ार लिए ,सोचते ही मेरे रोंगटे खड़े हो जाते I हाथों में सिरहन होने के साथ ही मुनिया के विचारों की श्रंखला टूटी और उसने जब अपने भाग्य की तरह टूटे हुए आईने में अपना चेहरा देखा जो उसके मुहँ पर काजल की कालिमा आँखों के कोरो से गर्दन तक ,आंसुओं के जरिये पहुँच कर काला हो चुका था I गर्दन पर गर्म चिमटे की मार का लाल फफोला देखर मुनिया को काली सुबह याद आ गई जब इतने सालों में पहली बार मौसी ने प्यार से उससे बड़े ही मीठे स्वर में बोला- ” मुनिया , आज तेरी नथ उतराई की रस्म हैं I पूरे सात हज़ार रुपये मिलेंगे ..जानती हैं हमारे यहाँ आज तक किसी बेड़नी को इतने पैसे कभी नहीं मिले I ”
मुनिया की आँखों के आगे उसकी माँ का रोता चेहरा और रात-रात भर नाचते हुए सुजन भरे पैर आ गए I वह भूखी शेरनी सी बिफर उठी – ” मेरी माँ ने तुम्हें पूरी दुनियाँ में सबसे ज्यादा विश्वासपात्र जानकर अपना खेत, ज़मीन जायदाद , रुपये , जेवर और मुझ जैसा कोल्हू का बैल दे दिया जो दिन रात तुम्हारी सेवा करता हैं और तुने मुझे फिर भी बेच दिया I ”
मौसी उसके बड़ी ही बेदर्दी से बाल खींचते हुए कुटिलता से बोली- ” और जो तूने बरसों यहाँ ठूँस ठूँस कर खाया हैं वो क्या तू कमाकर लाई थी I जैसा मैं कहू तुझे करना पड़ेगा नहीं तो तेरी बोटियाँ काटकर चील कौओं को खिला दूंगी और फिर उसे लगभग घसीटते हुए इस कमरे में लाकर पटक दिया I मुनिया ने मन में सोचा कि जिस तरह से मौसी ने उसकी माँ के विश्वास और भरोसे की हत्या करी हैं तो उसकी माँ की मौत आज से कई साल पहले नहीं बल्कि आज होने वाली हैं I ”
मुनिया ने अपनी प्रार्थना और तेज कर दी और उसका रोम रोम ईश्वर को मदद के लिए पुकारने लगा I तभी ऐसा लगा कि बाहर से लगा हुआ ताला कोई खोल रहा हैं I मुनिया की आँखों के आगे जैसे डर के मारे अँधेरा छा गया
I वह थरथराते हुए कांपने लगी और आज उसे पहली बार पता चला कि डर से कांपना क्या होता हैं I बहुत कोशिशों के बाद भी वह कुर्सी से खड़ी नहीं हो पा रही थी I अचानक दरवाजा खुला और शराब -सिगरेट की मिलीजुली तेज गंध से उसका जी मचल उठा और उसे लगा कि उसे मितली हो जायेगी I जब उसने दरवाजे की तरफ़ देखा तो एक काला कलूटा भीमकाय शरीर वाला आदमी दरवाजे पर ही खड़ा बड़ी ही अजीब नज़रों से उसकी ओर देख रहा था I आज मुनिया का इंसानों के साथ -साथ भगवान् से भी विश्वास उठ गया था I उसने चीखना चाहा पर उसकी आवाज़ जैसे तालू में ही चिपक गई थी I तभी उस आदमी ने अन्दर से दरवाजा बंद किया और उसकी तरफ बढ़ा I मुनिया पसीने से नहा गई और उसके दिल की धड़कन उसे साफ़ सुनाई देने लगी I केवल उसे अपनी धड़कनों से ही जिन्दा रहने का आभास हो रहा था वरना उसके पतला दुबला पत्ते सा थरथराता शरीर चेतना शून्य होता जा रहा था I
जब वो आदमी उसके और करीब गया तो मुनिया उसके जूतों पर गिर पड़ी और पागलों की तरह चीत्कार मारते हुए रोने लगी I वो फूट फूट कर रो रही थी पर एक भी शब्द लाख कोशिश करने के बाद भी नहीं बोल पा रही थी I तभी उस आदमी ने अचानक अपने पैर पीछे किये और मुनिया के कंधे पकड़ कर उसे उसे ऊपर उठाया I मुनिया की गर्दन दुखने लगी थी पर उसमे इतना साहस नहीं था कि वो उस आदमी की शक्ल देखे I तभी उस आदमी ने धीरे से उसका हाथ पकड़ा और अपनी जेब से कुछ रुपये निकाल कर उसकी मुट्ठी में रख दिए I मुनिया की आँखों के आगे रात रात भर शिव जी की फोटो के आगे रोती माँ का चेहरा घूम गया और वह बुदबुदाई -” माँ तेरी सारी पूजा व्यर्थ गई I ”
तभी वह आदमी बोला- ” मेरे पास अभी इतने ही पैसे हैं, यहाँ से जितनी जल्दी जा सकती हैं भाग जा, कही बहुत दूर ….जहाँ तेरी मौसी जैसे शैतान ना बसते हो I
मुनिया ने पहली बार उसकी आँखों में देखा जहाँ उसमें उसे साक्षात ईश्वर नज़र आया ….मुनिया ने उसके जूतों पर लगी धूल को अपने माथे पर किसी मंदिर में मिले प्रसाद की तरह लगाया और दौड़ती चली गई रेलवे स्टेशन की ओर जहाँ से उसकी माँ के सुनहरे सपने उसके उज्जवल भविष्य की राह देख रहे थे …..
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परिचय – :
डॉ. मंजरी शुक्ल
स्नातक – बी.ए ,स्नातकोतर – एम. ए .बी.ऐड.,पी. एच. डी(इंग्लिश), होशंगाबाद
रुचि: पुस्तकें,पेंटिंग,मूवी देखना,साहित्यिक गतिविधि- विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं एवं समाचार पत्रों में कविताएँ एवं कहानिया प्रकाशित,दूरदर्शन मे बच्चो के कार्यक्रम एवं गीत लेखन ,राज्यपाल द्वारा हित्य के क्षेत्र में सम्मान प्रेमचंद साहित्य समारोह २०१० मे “नमक का कर्ज ” कहानी को प्रथम पुरस्कार, वर्तमान में आकाशवाणी में उद्घोषक
सम्पर्क -ए-३०१,जेमिनी रेसीडेंसी,राधिका काम्प्लेक्स के पास,मेडिकल रोड,गोरखपुर,उ.प्र.,२७३००६ – 9616797138,
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आपकी तारीफ जितनी भी की जाय कम है , मंजरी जी आपने कहानी का हर किरदार इतनी ख़ूबसूरती से गड़ा है !
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आपकी कहानी बहुत ही अच्छी हैं सलीके के साथ दिया हुआ सन्देश है पर साथ ही मैं INVC का भी थैंक्स कहना चाहूंगी हमेशा की तरहा कुछ अच्छा पोस्ट करने के लियें !
आपका जबाब नहीं मंजरी जी ,आप बहुत अच्छी कहानीकारा है कुछ फेसबूकिया लेखको को आपसे सीखना चाहिय !
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ओह्ह क्या कहूँ पर कहे बगैर रहा भी नहीं जाता , आप कहानी लिखते वक़त पता नहीं एसे शब्द खोज लातीं है जो आत्मा तक को भेद दे !
बहुत उम्दा लेखन है ! हर किरदार कुछ कहता है !
दिल और दिमाग दोनों एक साथ आपकी कहानी को पढ़ते हुए किसी और दुनिया में चले गये थे !
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