लेखक म्रदुल कपिल कि कृति ” चीनी कितने चम्मच ” पुस्तक की सभी कहानियां आई एन वी सी न्यूज़ पर सिलसिलेवार प्रकाशित होंगी l
-चीनी कितने चम्मच पुस्तक की इक्कीसवीं कहानी –
____ विकास ____
सुबोध महतों और उसकी पत्नी फूलो महतो पिछले 5 दिन उस आम के पेड़ से सटे बैठे थे , क्या मजाल की एक पल भी वो इस पेड़ से एक इंच भी दूर हटे हो .
ये उड़ीसा के एक पिछड़े जिले का सुदूर जंगलो से घिरा दुनिया से कटा एक एक छोटा सा आदिवासी गाँव था , कुछ दिनों पहले पता चला था इसके नीचे अकूत अल्मुनियम दबा है , देश के विकास के :लिए सरकार ने एक विदेशी कम्पनी को ये इलाका बेच दिया था .
कम्पनी ने रातों रात पुलिस की मदद से गाँव वालो के चूल्हे चक्की , खेत बाग़ , पशु पछी सबको रौंद कर मिटटी में मिला दिया . 400 से ज्यादा परिवार उजाड़ दिए गए थे ,उन में से कुछ एक को मुवाजा मिल जाना था , बाकियों को हमारे शहर में दिहाड़ी मजदूर बन जाना था या चौराहे पर भीख मांगते हुए मर खप जाना था .
सुबोध महतो की झोपड़ी गिरा दी गयी उसने कुछ नही बोला , उस का सब कुछ बर्बाद हो गया लेकिन उसके चेहरे पर शिकन तक नही आयी .
लेकिन घर के पिछवाड़े लगा आम का पेड़ वो किसी कीमत पर नही कटने देगा . मुवअजा , डर ,धमकी , लालच सब बेकार हो गया वो दोनों पेड के पास से ट्स से मस नही हुए ,.. आखिर वो इस पेड़ को कैसे कटने दे सकते थे उनका इस आम के पेड़ से एक रिश्ता जो था
आज के 4 साल पहले जब उनका इकलौता 2 साल का लड़का मरा था तो उन्हें उसके शव् को इसी एक गज जमीन में दफन कर उसके ऊपर ये आम का पेड़ लगया था ।
उनको सामने से आते अर्ध सैनिक बल दिख रहे थे ,वो जान गए थे की देश के विकास के लिए इस पेड़ को अब कटना होगा , लेकिन वो दूसरी बार अपने सामने अपने लड़के मरते नही देख सकते थे ..
सुबोध और फूलो की नजरे कुछ पल के लिए आपस में मिली और कुछ पलो के बाद उसी पेड़ की एक शाखा पर एक ही साड़ी के दोनों सिरों पर सुबोध और फूलो महतो के शरीर देश के विकास के लिए झूल रहे थे …
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म्रदुल कपिल
लेखक व् विचारक
18 जुलाई 1989 को जब मैंने रायबरेली ( उत्तर प्रदेश ) एक छोटे से गाँव में पैदा हुआ तो तब दुनियां भी शायद हम जैसी मासूम रही होगी . वक्त के साथ साथ मेरी और दुनियां दोनों की मासूमियत गुम होती गयी . और मै जैसी दुनियां देखता गया उसे वैसे ही अपने अफ्फाजो में ढालता गया . ग्रेजुएशन , मैनेजमेंट , वकालत पढने के साथ के साथ साथ छोटी बड़ी कम्पनियों के ख्वाब भी अपने बैग में भर कर बेचता रहा . अब पिछले कुछ सालो से एक बड़ी हाऊसिंग कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर हूँ . और अब भी ख्वाबो का कारोबार कर रहा हूँ . अपने कैरियर की शुरुवात देश की राजधानी से करने के बाद अब माँ –पापा के साथ स्थायी डेरा बसेरा कानपुर में है l
पढाई , रोजी रोजगार , प्यार परिवार के बीच कब कलमघसीटा ( लेखक ) बन बैठा यकीं जानिए खुद को भी नही पता . लिखना मेरे लिए जरिया है खुद से मिलने का . शुरुवात शौकिया तौर पर फेसबुकिया लेखक के रूप में हुयी , लोग पसंद करते रहे , कुछ पाठक ( हम तो सच्ची ही मानेगे ) तारीफ भी करते रहे , और फेसबुक से शुरू हुआ लेखन का सफर ब्लाग , इ-पत्रिकाओ और प्रिंट पत्रिकाओ ,समाचारपत्रो , वेबसाइट्स से होता हुआ मेरी “ पहली पुस्तक “तक आ पहुंचा है . और हाँ ! इस दौरान कुछ सम्मान और पुरुस्कार भी मिल गए . पर सब से पड़ा सम्मान मिला आप पाठको अपार स्नेह और प्रोत्साहन . “ जिस्म की बात नही है “ की हर कहानी आपकी जिंदगी का हिस्सा है . इसका हर पात्र , हर घटना जुडी हुयी है आपकी जिंदगी की किसी देखी अनदेखी डोर से . “ जिस्म की बात नही है “ की 24 कहनियाँ आयाम है हमारी 24 घंटे अनवरत चलती जिंदगी का .