आया बैसाखी का पावन पर्व

-डॊं सौरभ मालवीय –

logo-invc-newsबैसाखी ऋतु आधारित पर्व है. बैसाखी को वैसाखी भी कहा जाता है. पंजाबी में इसे विसाखी कहते हैं. बैसाखी कृषि आधारित पर्व है. जब फ़सल पक कर तैयार हो जाती है और उसकी कटाई का काम शुरू हो जाता है, तब यह पर्व मनाया जाता है. यह पूरी देश में मनाया जाता है, परंतु पंजाब और हरियाणा में इसकी धूम अधिक होती है. बैसाखी प्रायः प्रति वर्ष 13 अप्रैल को मनाई जाती है, किन्तु कभी-कभी यह पर्व 14 अप्रैल को भी मनाया जाता है.

यह सिखों का प्रसिद्ध पर्व है. जब मुगल शासक औरंगजेब ने अन्याय एवं अत्याचार की सभी सीमाएं तोड़कर  श्री गुरु तेग बहादुरजी को दिल्ली में चांदनी चौक पर शहीद किया था, तब इस तरह 13 अप्रैल,1699 को श्री केसगढ़ साहिब आनंदपुर में दसवें गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने अनुयायियों को संगठित कर खालसा पंथ की स्थापना की थी. सिखो के दूसरे गुरु, गुरु अंगद देव का जन्म इसी महीने में हुआ था. सिख इसे सामूहिक जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं. गोविंद सिंह जी ने निम्न जाति के समझे जाने वाले लोगों को एक ही पात्र से अमृत छकाकर पांच प्यारे सजाए, जिन्हें पंज प्यारे भी कहा जाता है. ये पांच प्यारे किसी एक जाति या स्थान के नहीं थे. सब अलग-अलग जाति, कुल एवं अलग स्थानों के थे. अमृत छकाने के बाद इनके नाम के साथ सिंह शब्द लगा दिया गया.

इस दिन श्रद्धालु अरदास के लिए गुरुद्वारों में जाते हैं. आनंदपुर साहिब में मुख्य समारोह का आयोजन किया जाता है. प्रात: चार बजे गुरु ग्रंथ साहिब को समारोहपूर्वक कक्ष से बाहर लाया जाता है. फिर दूध और जल से प्रतीकात्मक स्नान करवाया जाता है. इसके पश्चात गुरु ग्रंथ साहिब को तख्त पर बिठाया जाता है. इस अवसर पर पंज प्यारे पंजबानी गाते हैं. दिन में अरदास के बाद गुरु को कड़ा प्रसाद का भोग लगाया जाता है. प्रसाद लेने के बाद श्रद्धालु गुरु के लंगर में सम्मिलत होते हैं. इस दिन श्रद्धालु कारसेवा करते हैं. दिनभर गुरु गोविंदसिंह और पंज प्यारों के सम्मान में शबद और कीर्तन गाए जाते हैं.

शाम को आग के आसपास इकट्ठे होकर लोग नई फ़सल की की खुशियां मनाते हैं और पंजाब का परंपरागत नृत्य भांगड़ा और गिद्दा किया जाता है.

बैसाखी के दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है. हिन्दुओं के लिए भी बैसाखी का बहुत महत्व है. पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना इसी दिन की थी.  इसी दिन अयोध्या में श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ था. राजा विक्रमादित्य ने विक्रमी संवत का प्रारंभ इसी दिन से किया था, इसलिए इसे विक्रमी संवत कहा जाता है. बैसाखी के पावन पर्व पर पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है. महादेव और दुर्गा देवी की पूजा की जाती है. इस दिन लोग नये कपड़े पहनते हैं. वे घर में मिष्ठान बनाते हैं. बैसाखी के पर्व पर लगने वाला बैसाखी मेला बहुत प्रसिद्ध है. जगह-जगह विशेषकर नदी किनारे बैसाखी के दिन मेले लगते हैं. हिंदुओं के लिए यह पर्व नववर्ष की शुरुआत है. हिन्दू इसे स्नान, भोग लगाकर और पूजा करके मनाते हैं..

______________

dr-saurabh-malviasaurabh-malviasaurbh-malviadr-saurbh-malvia-214x300लेखक का परिचय

डॉ . सौरभ मालवीय

संघ विचारक और राजनीतिक विश्लेषक

उत्तरप्रदेश के देवरिया जनपद के पटनेजी गाँव में जन्मे डा.सौरभ मालवीय बचपन से ही सामाजिक परिवर्तन और राष्ट्र-निर्माण की तीव्र आकांक्षा के चलते सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए है. जगतगुरु शंकराचार्य एवं डा. हेडगेवार की सांस्कृतिक चेतना और आचार्य चाणक्य की राजनीतिक दृष्टि से प्रभावित डा. मालवीय का सुस्पष्ट वैचारिक धरातल है. ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और मीडिया’ विषय पर आपने शोध किया है. आप का देश भर की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं एवं अंतर्जाल पर समसामयिक मुद्दों पर निरंतर लेखन जारी है. उत्कृष्ट कार्या के लिए उन्हें अनेक पुरस्कारों से सम्मानित भी किया जा चुका है, जिनमें मोतीबीए नया मीडिया सम्मान, विष्णु प्रभाकर पत्रकारिता सम्मान और प्रवक्ता डाट काम सम्मान आदि सम्मिलित हैं. संप्रति- माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में जनसंचार विभाग, सहायक प्राध्यापक, के पद पर कार्यरत हैं.

संपर्क -:
मोबाइल-09907890614
ईमेल-  malviya.sourabh@gmail.com – drsourabhmalviya@gmail.com

____________

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here