ए.पी.महेश्वरी, वरिष्ठ आई.पी. एस. अधिकारी
मानव अस्तित्व के शांतिपूर्ण तौर तरीके तलाशने का प्रयास करने वाले हम न तो पहले लोग हैं और न ही अंतिम होंगे। इसमें सभी को उचित अवसर प्रदान किया जाएगा। इतिहास में झांकने से पता चलता है कि विभिन्न समुदायों और समाजों ने आपसी सम्मानजनक और भयरहित समझौते पर पहुंचने के लिए इस प्रकार के प्रयास किये थे। किसी समुदाय या समाज में सामाजिक, राजनीतिक या आर्थिक स्तर पर विवाद किसी न किसी प्रकार के शोषण के रूप में अभिव्यक्त हुए हैं। हम सभी इस के प्रत्यक्षदर्शी हैं। विभिन्न समाज राज्य-प्रायोजित हिंसा और निजी लोगों द्वारा गैर-राज्य प्रायोजित आतंकवाद के बीच झूलते रहे हैं। इसने अब व्यापारिक आतंकवाद का स्वरूप धारण कर लिया है।
अत: परम्परागत रूप में शांति स्थापित करने के मुख्य दायित्व को महसूस करते हुए विभिन्न समुदाय आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में भाग लेते रहे हैं। उन्होंने ऐसा शांति के उन रखवालों का सतर्कता जानकारी या ज्ञान देकर किया है जिन्हें उन्होंने अपनी सुरक्षा के लिए प्राधिकृत किया है। इसका सीधा सादा अर्थ यह है कि लोगों को यह समझना चाहिए कि उनके इर्द-गिर्द जो घटित हो रहा है उस पर नजर रखना उनका भी कर्तव्य है। साथ ही, महत्वपूर्ण जानकारी उन लोगों तक पहुंचानी है जिन्हें वे समझते हैं कि वे आतंकित जानकारी पर अमल करने के लिए अधिक जिम्मेदार हैं। एजेंसियों को प्रबंध करने के खतरनाक व्यवसाय को अपनाने के लिए आगे आना चाहिए। उन्हें जीवन में प्रलोभन के चकमे में नहीं आना चाहिए और व्यवस्था को कम जिम्मेदार लोगों पर भी नहीं छोड़ना चाहिए। इस का यह तात्पर्य भी है कि अच्छे नागरिकों को अपनी मनोवृत्ति बदलना होगा कि यह उनकी जिम्मेदारी नहीं है बल्कि किसी और का सिरदर्द है।
यहां मै पूर्व राष्ट्रपति डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम के विचार से सहमत हूं जिन्होंने कहा था कि अच्छे नागरिकों को एक राष्ट्रीय अभियान के रूप में आतंक के विरूध्द एकजुट होना होगा ताकि आतंकवादी तत्त्वों के नेटवर्क को परास्त किया जा सके। अन्यथा भी, हम ने नागरिक रक्षा सोसाइटियों, होमगार्डों, एनसीसी, स्काउटों, सार्वजनिक क्लबों आदि के रूप में विभिन्न बलों का गठन किया है। आम लोगों में जानकारी और सतर्कता फैलाने के लिए इस मंच को सही अर्थ में सक्रिय किया जा सकता है। इसके बाद शिक्षित वर्ग की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण हो जाती है। विशिष्ट वर्ग में अपनी नौकरी या समृध्दि या सामाजिक तानेबाने के रूप में अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा तैयार करने की बजाए हमें चन्द क्षणों के लिए स्वचिंतन करने की आवश्यकता है कि क्या हम ने उपेक्षित लोगों और व्यापक रूप में समाज के लिए पर्याप्त कार्य किया है। एक सुव्यवस्थित प्रबंधन को अपनी भूमिका निभानी है। बुरे कार्यों के प्रति सामाजिक छलाव और कर्कशता समय के साथ समाप्त हो गई है और आज हम राजनीति और प्रशासन में अपराधीकरण का बोलबाला देखते हैं। किसी चुनाव के मतदान का प्रतिशत सौ प्रतिशत क्यों न हो? हम कुछ विशेषाधिकारों का उपयोग करना समाप्त क्यों नहीं कर सकते या किसी काम के लिए छोटा रास्ता अपनाना क्यों नहीं छोड़ सके और सार्वजनिक सेवाओं में दलालों को पनपने से निरूत्साहित क्यों नहीं कर सकते हैं। सामाजिक सहयोग बहुत कुछ कर सकता है। आनुमानिक सर्वेक्षणों के अनुसार प्रशासन में विपरीत परिस्थितियों के बावजूद 20 प्रतिशत लोग अच्छे रहेंगे। सभी प्रयासों के बावजूद 20 प्रतिशत लोग हर हाल में खराब रहेंगे। बीच के 60 प्रतिशत लोग ध्रुवीकरण के आधार पर कभी इस ओर तो कभी उस ओर होते रहेंगे। यहां पर सार्वजनिक समर्थन विशेष भूमिका निभा सकते हैं। राजनीतिक ध्रुवीकरण की स्थिति में करने की तुलना में कहना आसान है। तथापि हम इसे इसके हाल पर नहीं छोड़ सकते, सामाजिक संस्थाओं को अपना मार्ग तय करना होगा।
हमारे समाज को पुलिस तंत्र में सुधारों और व्यावसायिकता के मुद्दे को प्रमुखता से लेना चाहिए। पुलिस सेवा को सुनियोजित और गंभीर सेवा के रूप में घोषित किया जाय और केवल संख्याओं के बजाय गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाय। पुलिस को सत्तासीन पार्टी का दमनकारी औजार अथवा नीचले तबके के लोगों के संगठन जो कि मनुष्य की आदिम प्रवृत्ति पर फल-फूल रही है, से आगे बढक़र विकसित किये जाने की आवश्यकता है। समाज में इन मुद्दों पर बहस होनी चाहिए। और उनके लिए बेहतर पुलिस प्रारूप की मांग की जानी चाहिए। समाज द्वारा सुरक्षा सेवाओं को प्रतिष्ठा दिये जाने और संज्ञानात्मक बपौती को दूर किये जाने की आवश्यकता है।
एक चीज जो जिम्मेदार लोग तुरन्त कर सकते हैं वह है सुरक्षा एजेंसियों के साथ भागीदारी मंच विकसित करना जिसे प्रौद्योगिकी रूप से निर्यातित आतंक को विफल करने के लिए विशेषज्ञ सेवाओं की आवश्यकता है। साइबर विशेषज्ञ, इंजीनियर, डॉक्टर, लेखा-परीक्षक सभी को मिलकर विभिन्न तरह के आतंक के प्रिंटों की कूटभाषा के अर्थ निकालने और उनका पता लगाने में अपनी विशेषज्ञता से एजेंसियों की मदद करने के लिए एक निकाय के रूप में कार्य कर सकते हैं जिससे अपेक्षित संभार-तंत्र के कारण होने वाले विलम्ब को खत्म किया जा सके। अनेक सुरक्षा मंचों के ऐसे विशेष सदस्यों को अपेक्षित सत्यापन के पश्चात प्रेरित करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है और सुरक्षा एजेंसियां उनका सहयोग कर सकती है। यदि इनमें से प्रत्येक व्यक्ति महीने में केवल 24 घंटे का समय निकालें तो ऐसे निपुण लोगों का यह दल किसी भी नाकेबंदी को काफी हद तक कम करने में सक्षम रहेगी।
पुलिस अभियानों का प्रयोग अनेक स्तरों पर सार्वजनिक-निजी सहयोग के रूप में स्थापित संगठनों को भी मौका देने के लिए किया जा सकता है। अनेक देशों ने प्रभावी सामाजिक पुलिस तंत्र का विकास किया है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अच्छा स्वास्थ्य प्रतिदिन उठाये गये संतुलित कदमों का नतीजा होता है न कि अल्प समय में शक्तिवर्धक खुराक लेने का।
अन्तत: हमें यह सोचना होगा कि हमें भी केवल गुहार लगाने और शोर मचाने के बजाय स्वयं को पुलिस तंत्र का हिस्सा बनाना चाहिए और सुरक्षा प्रक्रियाओं के साथ सहयोग करना चाहिए। अत: सतत जागरूकता और चेतना हमारी आदत में शुमार होनी चाहिए केवल अनियमित सनक के रूप में नहीं।
(लेखक वरिष्ठ आई.पी. एस. अधिकारी हैं)
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